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सम्प्रदाय न धर्म है, धर्म न बने दिवार । धर्म सिखाए एकता, धर्म सिखाए प्यार ॥
शुद्ध धर्म जागे जहाँ, होय सभी का श्रेय। निज हित, पर हित, सर्व हित, यही धर्म का ध्येय ॥
धर्मवान अपना
की जिन्दगी, सबके सुख हित होय । भी होए भला, भला सभी का होय ।
धर्म - विहारी पुरुष हों, धर्म - चारिणी नार। धर्मवन्त संतान हो, सुखी होय संसार ॥
बीते क्षण में जी रहे, या जो आया नाय । इस क्षण में जीएँ अगर, तो जीना आ जाय ॥
पल-पल-क्षण-क्षण सजग रह, अपने कर्म सुधार । सूख से जीने की कला, अपनी ओर निहार ।।