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________________ प्रकाशकीय 'कल्याण मित्र' पूज्य सत्य नारायणजी गोयन्का के प्रवचनों व लेखों की मांग साधक तथा साधनाप्रिय लोगों द्वारा बार-बार होती रही। उसका प्रकाशन करने में सयाजी ऊ बा खिन मेमोरियल ट्रस्ट को खुशी हो रही है। इस तरह की पुस्तक की आवश्यकता पूज्य गोयन्काजी ने भी महसूस की किन्तु ध्यान शिविरों की व्यस्तता के कारण लेखों का चयन तथा संशोधन करना सम्भव नहीं हो सका था। वैसे ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'विपश्यना' में पूज्य गोयन्काजी के उद्बोधन व लेख प्रसिद्ध होते रहे हैं और उनका साधकों को लाभ भी मिलता रहा, पर साधना की पार्श्वभूमि ठीक से समझ में आवे ऐसा संग्रह पुस्तक रूप में निकलने के लिए उसे देखकर सिलसिलेवार तैयार करने के लिए समय नहीं निकल पाया था। किन्तु पूज्य गुरुजी की बीमारी के बाद विश्राम के समय उन्होंने 'धर्म : जीवन जीने की कला' अपने पुराने लेखों तथा नये लेख लिखकर यह पुस्तक तैयार करने की कृपा की। उसके लिए ट्रस्ट उनका अत्यन्त कृतज्ञ है। चूंकि गोयन्काजी की यह रचना उनके सुदीर्घ जीवन के अनुभवों पर आधारित है इसलिए साधकों को तो प्रेरणा मिलेगी ही.पर अन्य पाठक भी उनके अनुभवों से लाभान्वित होंगे। साधकों तथा पाठकों की ओर से पूज्य गोयन्काजी के दोहों की भी मांग आती रही है। उसकी कुछ अंशों में पूर्ति इस पुस्तक में कुछ दोहे देकर की जा रही है, जोकि उस विषय को समझने में पाठकों की मदद करेंगे । इन दोहों ने पुस्तक को अधिक रोचक व उपयोगी बनाने में सहयोग दिया है। ___ यह ट्रस्ट परम श्रद्धय स्वर्गीय सयाजी ऊ बा खिन की पावन स्मृति में स्थापित हुआ है। इसका उद्देश्य बिना किसी जातीय अथवा वर्गीय भेदभाव के लोगों को भगवान बुद्ध की बताई हुई और ब्रह्मदेश में गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा अपने शुद्ध रूप में सुरक्षित रखी हुई इस पावन विपश्यना साधना का
SR No.010186
Book TitleDharm Jivan Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Goyanka
PublisherSayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai
Publication Year1983
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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