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धर्म : जीवन जीने की कला
हुआ मन स्वयं दुखी रहता है। यह प्रकृति का अटूट नियम है । यह ऋत है। यह धर्म नियामता है। ___साधको ! प्रकृति के अटूट नियम के प्रति, इस ऋत, इस धर्म नियामता के प्रति सतत् जागरूक रहें और अपने मन को सौमनस्यता से भरने तथा दौर्मनस्यता से दूर रखने का प्रयास करते रहें।
इसी में अपना सही कुशल है । इसी में अपना वास्तविक मंगल है ।