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जीवन में धारण किए, धर्म होय फलवन्त । बिन औषधि सेवन किए, कहाँ रोग का अंत ?
जाने समझे वृथा बोझ
धर्म को, पर न करे व्यवहार । ढोता फिरे, कैसा मूढ़ गंवार !!
धारण करना धर्म है, वरना कोरी बात । सूरज उगे प्रभात है, वरना काली रात ॥
धर्म धार निर्मल बने, राजा हो या रंक । रोग, शोक, चिंता मिटे, निर्भय होय निशंक ॥
शुद्ध मिले
धर्म धारण करें, करें दूर अभिमान । अमित संतोष सुख, धर्म सुखों की खान ।।
धारण योग-क्षेम
कर
ले बावरे, बिन धारे नहिं त्राण । दातार है, धर्म बड़ा बलवान ॥