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निर्जर मोक्ष तत्व ये सातों सार जगत . के माई ॥ 'दर्शनं ज्ञान मई मुजीव विन जीव पंच विधि जानो । पुद्गल धर्म अधर्म और आकाश काल युत मानो ॥५॥ शुभ - अरु अशुभ त्रियोग जानिये काश्रव दुख दाता। जीव साथ संबंध कर्म हो सोही बंध कहाता ॥ समदंमादि -करं कर्म रोकना संवर जानो सोई ।, क्रमवती कमाँ का झरना सोई निरजर होई ॥ ६ ॥ सकल कर्म का एक साथ कर देय नाश जो ज्ञाता । ताकू मोक्ष कहत श्रुत पारंग:मुख अनन्त को दाता ।। अब चारित 'आराधन वरतूं तेरह भेद कहाई । पांच महाव्रत पांच समिति हैं तीन गुप्ति युत भाई ॥७॥ दया कायं छहों की पाले सोय हंसा व्रत है। सत्य महा व्रत द्नो जानो सत्य बोलते नित है । बिन दीये नहिं लेवें कुछ भी सो अचोर्य व्रत जानो । माता भगनी सम तिय समझ ब्रह्मचर्य सो मानो॥८॥ चंसुर बाँस विधि परिग्रह में से रन खिल तुप भर है। परिगृह त्याग महाव्रत पंचम अब पंच समिति उचर है। जीव रहित मथवी को लखिकर चलै समिति ईया है । . संशय रहित बचन प्रिय वोलें भापा समिति क्रिया है ॥९॥ एक बार निरदीप अशन लै समिति एपणा जानो। धरै उठामें : देख यही आदान निक्षेपण मानो । अस स्थावर जीवों को पीडा नहि - होचे जासे ।
पै मला मूत्रादि जहांही समिति क्षेपण खासे ॥१०॥ ।। करै निरोध मन् वचन काया भले मकार सज्ञानी ।