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. (५) जैन धर्म ही परमात्मा का उपदेश है क्यों कि वही पूर्वा. पर विरोध और पक्षपात रहित सब जीवों को उनके कल्याण का उपदेश देता है और उसी से परमात्मा की सिद्धि और आप इस संसार में है। .
(६) एक मात्र 'ही और. 'मी ही अन्य धर्म और जैन धर्म का भेद है। यदि उन सब के भाव और उपदेश की इयत्ता की 'ही' 'भी' से बदल दी जाय तो उन्हीं सवका समुदाय जैनधर्म हैं। ......(७.) मत समझो कि जैन धर्म किसी समुदाय विशेप , का ही धर्म है या हो. सक्ता हैं । मनुष्यों की तो कहै कौन
जीवमात्र.इस को स्वशक्त्यानुसार धारण कर तद्रूप निज कल्याण कर सकता है। .
(८) जैनधर्म के समस्त तत्व.और उपदेश वस्तु स्वरूप, प्राक्रतिक नियम, न्यायशास्त्र.शक्यानुष्ठान और विकाश सिद्धान्त के अनुसार होने के कारण सत्य हैं। .....(९) सर्वज्ञ: वीतराग और हितोपदेशक देव , निम्रन्य गुरु और अहिंसा मरूपक शास्त्र ही जीव को यथार्थ उपदेश दे सकते हैं और उन सबके रखने का सौभाग्य एक मात्र जैन धर्म को ही प्राप्त है।.. ...
- (१०) समस्त दुःखों से उद्धार करने वाली जैनेन्द्रा दीक्षा ही है। यदि उसकी. शक्ति न हो तो भी वैसा लक्ष्य रख अन्याय और अभक्ष्य का त्याग करके ग्रहस्य मार्ग द्वारा क्रमशः स्वपर कल्याण करते रहना चाहिये।
..॥ समाप्त ॥