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उत्तम साधनादि बताकर विपमं से.विपम और कठिन से कठिन प्रश्नों और सूक्ष्मसे सक्ष्म वातों को इस उत्तम और सुगम रीतिसे साध कर सिद्ध कर दिया है कि देखकर आज कल के स्कूलों के पड़े बड़े २ गणितज्ञ तथा विद्वान महाशय दांतों तले उगली दबाकर अचम्भेके समुद्र में मग्न हो जाते हैं।.” . : ..
....(२) एक महायोजन अर्थात दो हजार कोस या लगभग चार -हजार मील व्यासं का और इतना ही गहरा गोल गर्ग खोदकर जो पल्यका हिसाव समझाया गया है। उसका एक कारण तो यह है कि पल्यं शब्दका अर्थ ही खत्ती खलियान, गढ़ा या गारं है। दूसरी मुख्य कारण यह है कि पल्यके बड़े भारी काल का महत्व भले प्रकार चित्तपर प्रकित हो सके । यदि उसके वर्षोकी महान्, संख्या को केवल प्रों में लिख : दिया जाता ( जो ४७ अंक प्रमाण ही है तो उसके घर को महान संख्या : का पूर्ण और वास्तविक महत्व कदापि चित्तपर अंकित न होता। जैसा किमी ऋषभ निर्वाण सम्वत्को वास्तविक और पण महत्व को करनेवालों के चित्तपर अंकित नहीं हुआ जो पल्यके वर्षों की संख्या. से केवल सँजो गुणा बड़ा नहीं किन्तु संखों गुणों से भी करोड़ों गुणा बड़ा ७६ अंकों में है। . . :: .....
उदाहरण के लिये श्री जिनवाणी के पुनरुक अक्षरों को संख्या ही को ले लीजिये, जो एक. कम एकही अर्यात् १८४८६७ ४४०७३७०८५११६१५ केवल २० अंक प्रमाण है । इन अकोमें बता देने से इसका पूर्ण महत्त्व हृदय पर अंकित नहीं होता। परन्तु इन. अक्षरोकी संख्याक विषयमें यदि इस प्रकार कहा. बाय कि वह इतनी अधिक बड़ी है कि अगर उन सम्पूर्ण अधुनरुक्त अक्षरों को कांगज पर लिखा जावे तो उनके लिखने में करोड़ो हाथियों को तोलके यरीवर स्याही खर्च हो जायगी और अर्को खडा, हाथियोंके बजन वराबर कागज खर्च होगा और उसकी केवल एक प्रति लिखनेमें जल्दी से जल्दी लिखनेवाले सैकड़ों मनुष्यों
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