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________________ ( १२. . ) * श्लोक * " • जुगादि वृषभेदेवः हारकः सर्व संकटान | रक्षकः सर्व प्राणाणां, तस्मात जुहार उच्चते ॥ अर्थ- जुहार शब्द में तीन अक्षर हैं १ ज २ हा ३ र । सो जु से अर्थ है कि जग के आदि में भऐ जो श्री देवाधिदेव ऋषभदेव भगवान और है. से हरने वाले 'सर्व' सकटों के, गैर रं, से रक्षा करने वाले कुल प्राणीयों के उनको हमारी तुम्हारा दोनों का नमस्कार हो और वह कल्याण करता परमपूज्य हमागं दोनों का कल्याण करें । - प्ण पक्ष को पडवा का सुबह हो सोता हुआ दाहने स्वर में जागे और शुन पक्ष की पडवा को सुबह वा खर में जागे तो शरीर निरोग्य रहे । यदि स्वर विपरीत हो तो करवट से बदले । भोजन के पीछे परमात्मा को नमस्कारकर दोनों हथेलियाँ . को रगड़ मैत्रों से मलं ले तो नेत्र रोग न होगा | यह धर्म साधन हेतु लिखा है । . ६- प्रत्येक नगर में दि० जैन वाचनालय होना जरूरी है । जहां पर सब जैन जैन भाई श्राकर बैठें यांचे चरचा करें इत्यादिफीस वगैरह किसी प्रकार की नहीं होना चाहिए | और हर स्थान पर मालवा औषधालय वड़नगर को शाखा भी रखनी लाभ दायक है । • " - ७- यदि आप किसी को जैन धर्म का अमूल्य रस अमृत पाम करा देवेंगे तो यकीन रखिए कि वह आप का बड़ा श्रभारी और उत्कृष्ट मित्र जन्म २ में होगा ! अज्ञान तिमिर व्याप्तिमयाकृत्य यथायथम् । जिन शासनं महात्म्य प्रकाशः स्यात्मभावना ॥ : खामी समन्त भद्राचार्य ने कहा है कि अज्ञान के अँध कार को नष्ट करके जैन धर्म के वड़प्पन का प्रकाश करना ही सच्ची प्रभावना है। इस लिए प्रत्येक स्त्री पुरुष को चाहिए कि जैन प्रथों को कायं पढ़, दूसरों से पढ़ने के लिए कहें। और निर्धनों
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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