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. ... ( ) भाये, जहाँ यति भट्टारक (प्राचार्य ) विराजते थे ये सप्तऋषिः ऋद्धि के प्रभाव कर धरती से चार अंगुल अलिप्त. चले आये .. और चैत्यालय में धरती पर पगं.धरते .श्राए--आचार्य उठ. . खडें भयें उन्होंने और उनके शिष्यों ने नमस्कार किया . किर वे वंदना कर आकाश मार्गसे मथुरा गये । इनके पीछे अहंदस सेठ चैत्यालय में आया और ऋषियों का सर्व वृतान्त जान महा खेद खिन्न . भया । और कहने लगा । जौं लग उनका दर्शन न करूं तौं लग मेरे मन का दाह. न .
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कार्तिक की पूनौ नजीक: जान सेठ अहंदत. महा सम्यकः दृष्टि नृप सुल्य विभूत अजोध्या से मथुरा को सर्व कुटुम्ब संहितं , सप्त ऋषि · के पूजन · निमित्त चला । जाना है मुनों का महात्म जिसने-कार्तिक सुदी सप्तमी के दिन मुनों के चरणों में जाय पहुंचा। वह उत्तम समझ का. धारक विधि पूर्वक मनि वन्दना कर मथुरा में अति शोना कावसा भया यह सुन राजा शत्रुधन मय अपनी माता सुममा के शीघ्र प्रामुनियों को नमस्कार कर इस प्रकार कहता भया ... हे . देव आपके आये इस नगर से. मरी गई. रोग गए दुषित गया सर्व विघ्न · गएं सुमित भया सब. साता भई मज़ा के दुख गए सर्व समृद्धि भई जैसे सूर्य के उदय से कमलनी फूले। कोई दिन आप यहां ही तिष्ठो। तब मुनि कहते भर, हे शत्रुबन जिनं आज्ञा सिाय अधिक रहना उचित नहीं श्रह चनुर्य काल धर्म के उद्योग का कारण है इस में अनिन्द्र का धर्म भा जीव धारे हैं जिन :आज्ञा.