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पाटणमा श्री हेमचन्द्राचार्य जेन ज्ञानमदिरस्थित कागळ उपरना हस्तलिखित (Paper Mss) २००३५ ग्रथोनो अकारादिक्रम पुस्तकनु नाम पत्र भाषा कर्ता क्रमाक
पत्र माषा कर्ता पुस्तकनु नाम
क्रमाक
८
स
२९
स
३८१६ (१) विष्णुकुमारकथा गाथाबद्ध १-४ प्रा १८९१७ विष्णुपजर स्तोत्र
१ स १८९३० विष्णुपजरस्तोत्रादि
१० स ७१५९ विष्णुपजरस्तोत्र ८२५७ (२) विष्णुपञ्जरस्तोत्र १६०८९ विष्णुभक्ति
२ गु मीठो श्रावक १२५८१ विष्णुसहस्त्रनामस्तोत्र
विष्णुसहस्रनामस्तोत्र २६ १०८१७ विष्णुसहस्रनामार्थ ४३ ११४७३ विसवादप्रकरण अपूर्ण ३८३८ विस्मयज्ञानपबोध सस्तबक विद्वद्गोष्ठी
२ सगु ४४५३ विहरमानजिनएकविशतिस्थानप्रकरण
२ प्रा शीलदेव १७५०८ विहरमानजिन एकविशतिस्थान प्रकरण सावचूरि
३ प्रास. मू शीलदेव १२३६५ (२) विहरमानजिनपत्रकल्याणकस्तव
७ स २ आनन्दविमलसूरि ११९२५ विहरमानजिनभासवीसी ६ गु विनयविजयोपाध्याय ५३६८ विहरमानजिनवीसी
२-८ गु जसविजय ६१८८(१) विहरमानजिनवीसी
१-८ गु जिनविजय ६२३३ (२६)विहरमानजिनवीसी
यशोविजयोपाध्याय ६२३३ (२८)विहरमानजिनवीसी ६३-६८ गु यशोविजयोपाध्याय ७०५० (१) विहरमानजिनवीसी
११ गु १ यशोविजयो
पाध्याय ११९२६ विहरमानजिनवीसी २-९ गु यशोविजयोपाध्याय ११९२७ विहरमानजिनवीसी
९ गु यशोविजयोपाध्याय १२४५१ विहरमानजिनवीसी
९ गु यशोविजयोपाध्याय
१५९३४ विहरमानजिनवीसी
७ गु जिनहर्ष १०२३ (४७)विहरमानजिनस्तवन ९१६३ विहरमानजिनस्तवनचोवीसी १० गु यशोविजयोपाध्याय ११९२३ विहरमानजिनस्तवनचोवीसी १२ गु यशोविजयोपाध्याय ११९२४ विहरमानजिनस्तवनचोवीसी ११ गु यशोविजयोपाध्याय ६४०० (१) विहरमानजिनस्तवनवीसी १-७ गु यशोविजयोपाध्याय ७३३२ विहरमानजिनस्तवनवीसी १९ गु न्यायसागर । ३१३२ (२०)विहरमानवीनति
६ह गुजराती जयशेखरसूरि १९९७८ विहारमानजिन स्तुति १९६३७ वीतराग महादेव स्तोत्र ७ स हेमचन्द्राचार्य ३०८७ (१३)वीतरागविज्ञप्ति
७ प्रा जिनप्रभसूरि १७४३९ (२) वीतराग विनति ३५६४ (८)वीतरागस्तव
८२-९६ स आचार्य हेमचन्द्र ४९७५ वीतरागस्तव
१७ स हेमचन्द्राचार्य ४९७६ वीतरागस्तव
८ स हेमचन्द्राचार्य १६१७४ वीतरागस्तव
हेमचन्द्राचार्य १८५४२ वीतरागस्तव
७ स हेमचद्राचार्य १७१४५ वीतरागस्तव अष्टम प्रकाश ८ स मू हेमचन्द्राचार्य १६२६२ वीतरागस्तव अवचूरि ८१८६ (२) वीतरागस्तव आद्याक्षरश्लोक ४ स ७३९९ (१) वीतरागस्तवन
१ स. १ चारित्रसुन्दर ७४१५ (३) वीतरागस्तवन
७ स ३ जयतिलकसूरि
शिष्य ९१७३ वीतरागस्तवन
२ गु सकलचन्द्र ९१७४ वीतरागस्तवन
२ गु पार्श्वचन्द्र १२३७४४) वीतरागस्तवन
१ स १जेत्रसूरि १२१२४ (११)वीतरागस्तवन-प्रभातकुलक ७३-७४प्रा १९२६४ वीतरागस्तवन टिप्पणी सह २ स