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पाटणमा श्री हेमचन्द्राचार्य जेन ज्ञानमदिरस्थित कागळ उपरना हस्तलिखित (Piper MH)२००३५ ग्रथोनो अकारादिक्रम पुस्तकनु नाम पत्र भाषा कर्ता क्रमाक पुस्तकनु नाम
पत्र भाषा कर्ता
क्रमाक
५५४७ रघुवशकाव्य पञ्चमसर्ग टीका १३ स मू महाकवि
कालिदास, ।
टी गुणविनयगणि १७८७७ रघुवश काव्यसटीक
मू कालिदास, त्रिपाठ अपूर्ण
११७ सं टीसमयसुदरोपाध्याय ७०६३ रघुवशकाव्य सप्तमसर्गपर्यन्त अपूर्ण
२० स महाकवि कालिदास १७७२३ रघुवश नवमसर्गपर्यंत ३४ स कालिदास २६८३ रघुवशमहाकाव्य
५४ स महाकवि कालिदास २६८४ रघुवशमहाकाव्य
४८ स महाकवि कालिदास २६८५ रघुवशमहाकाव्य
४७ स महाकवि कालिदास २८६१ रघुवशमहाकाव्य
९१ स महाकवि कालिदास ३९४७ रघुवशमहाकाव्य
४३ स महाकवि कालिदास १३५६६ रघुवशमहाकाव्य
७६ स महाकवि कालिदास १३६०६ रघुवशमहाकाव्य
३० स महाकवि कालिदास १३६२६ रघुवशमहाकाव्य
४३ स महाकवि कालिदास ९५९३
रघुवशमहाकाव्य अपूर्ण २१ स महाकवि कालिदास २६८७ रघुवशमहाकाव्य चारित्रवर्धनी
खरतर टीका
१८३ स टी चारित्रवर्धन १६६० रघुवशमहाकाव्य टिप्पणी सहित अपूर्ण
१०९ स महाकवि कालिदास १०६९१ रघुवशमहाकाव्यटीका १७७ स धर्ममेरुगणि ११७१५ रघुवशमहाकाव्यटीका ३८ स दिनकर मिश्र ११७१६ रघुवशमहाकाव्यटीका १५-५४ स ३७६९ रघुवश महाकाव्य पचदशसर्गपर्यन्त
७१ स महाकवि कालिदास १३९३४ रघुवशमहाकाव्य प्रथमसर्ग ५ स महाकवि कालिदास २६८६ रघुवशमहाकाव्य विवरण
वि उदयाकर, पशिकासहित त्रिपाठ २८३ स प आनन्ददेवायन
वल्लभदेव
२८४४ रघुवशमहाकाव्य विवरणसहित द्वि.खण्ड
१२७ स उदयाकर पण्डित ४७५१ रघुवशमहाकाव्य विशेषार्थबोधिका व्याख्या
सर्ग९ थी १८ पर्यन्त ८८ स. गुणविनयगणि खरतर ६२५० रघुवशमहाकाव्य सजीवनीटीकासह मू महाकवि तृतीयसर्ग
२१ गु कालिदास,
टी मल्लिनाथसूरि ६२४९ रघुवशमहाकाव्य सजीवनीटीकासह मू महाकवि त्रिपाठ द्वितीयसर्गपर्यन्त २३ स कालिदास,
टी मल्लिनाथसूरि ८५ रघुवशमहाकाव्य
मू महाकवि सटीक
११६-२३४ स कालिदास,
टी धर्ममेरु १०२१५ रघुवशमहाकाव्य सटीक तृतीयसर्गथी मू महाकवि सप्तमसर्ग पर्यन्त
६० स कालिदास
महाकवि कालिदास, त्रिपाठ १६ सर्ग पर्यन्त २-१५३ समू टी मल्लिनाथसूरि १९०८६ रघुवशमहाकाव्य सटीक त्रिपाठ टिप्पणी सह अपूर्ण
७६ स मू कालिदास ३९४८ रघुवशमहाकाव्य सर्ग १-२
२-९ स महाकवि कालिदास ४८४५ रघुवशमहाकाव्य सावचूरि
मू महाकवि पञ्चपाठ
५५ स कालिदास १५००४ रघुवशमहाकाव्यसावचूरि
मू महाकवि पञ्चपाठ
१०१ स कालिदास १७६४० रघुवश महाकाव्य सुवोधिका टीका
१९९ स श्री विजयगणी ८६५० रघुवशमहाकाव्यावचूर्णि अपूर्ण
दशमसर्गपर्यन्त