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पाटणमा श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमदिरस्थित कागळ उपरना हस्तलिखित (Paper Mss) २००३५ ग्रथोनो अकारादिक्रम पुस्तकनु नाम पत्र भाषा कर्ता क्रमाक पुस्तकनु नाम
पत्र भाषा कर्ता
क्रमाक
१०४८२ जीतकल्पसूत्र
२ प्रा जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण १७४१७ जीतकल्पसूत्र
४ प्रा जिनभद्रगणि क्षमा ३४१ जीतकल्पसूत्र चूर्णि २९ प्रा सिद्धसेनगणि ३५५ जीतकल्पसूत्रचूर्णि * प्रा सिद्धसेनाचार्य ६७५६ (१) जीतकल्पसूत्रचूर्णि १-१४ प्रा १ सिद्धसेनाचार्य ६७६७ जीतकल्पसूत्रचूर्णि
१२ प्रा सिद्धसेनाचार्य १००५७ जीतकल्पसूत्रचूर्णि १८ प्रा सिद्धसेनाचार्य ६७५६ (२) जीतकल्पसूत्रचूर्णि
विषमपदव्याख्या १४-२७ स २ श्रीचन्द्रसूरि १००५८ जीतकल्पसूत्रचूर्णि विषमपदव्याख्या
१७ स श्रीचन्द्रसूरि १००५६ जीतकल्पसूत्रभाष्य
५० प्रा १५०३९ जीतकल्पसूत्र मूल
४ प्रा जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण ६८८ जीतकल्पसूत्र वृत्ति सहित ४५ प्रा स मू जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण वृ
तिलकाचार्य ८२६ जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित ३३ प्रास मू जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण व
तिलकाचार्य ८५७ जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित ३५ प्रास व तिलकाचार्य ६७५४ (२) जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित ३-२५ प्रास तिलकाचार्य ६८९० जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित ३२ पास मू जिनभद्रगणि वृ
तिलकाचार्य १००५९ जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित २६ प्रा स मू जिनभद्रगणि वृ
तिलकाचार्य
१५०३८ जीतकल्पसूत्र सटीक ३४ प्रा स मू जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण,
टी, तिलकाचार्य ३४० जीतकल्पसूत्र स्वोपज्ञ
जिनभद्रगणि महाभाष्य सहित
प्रा क्षमाश्रमण १२०६७ जीनस्तवनचोवीसी अपूर्ण ८ गु शिवलक्ष्मी १२००२ जीनागमतपगणणु नकल २ २ स ९१२६ (२) जीभ-दन्तसवाद
१ गु २ नरपति कवि ६३३७ (२) जीभ-दातसवाद
१ गु ६४६८ (२) जीभगीत
१ गु २ लावण्यसमय ९४२१ जीभदातसवाद
१ गु हीरकलश ११४६५ जीमूतवाहनकथा पद्य जीवरक्षाविपे'
३ स १०७९१ (२) जीराउलागीतछन्द
२ गु ३१३२ (२१)जीराउलापार्श्वनाथवीनति ६ ड गुजराती २०१७ (२४)जीराउलापार्श्वनाथस्तवन ४७-४८ स ३०८७ (१६)जीराउलापार्श्वनाथस्तवन १० अप ३१०१ जीराउलापार्श्वनाथस्तवन २ गु कवि लावण्यसमय ३२६४ (१) जीराउलापार्श्वनाथस्तवन ३२६४ (३) जीराउलापार्श्वनाथस्तवन २ गु ५७९६ जीराउलापार्श्वनाथस्तवन २ गु लावण्यसमय ६३०६ जीराउलापार्श्वनाथस्तवन २ गु लावण्यसमय ८९५७ (४) जीराउलापार्श्वनाथस्तवन ९२१३ (१) जीराउलापार्श्वनाथस्तवन ३ गु १ सुधानन्दनसूरि ९७४९ जीराउलापार्श्वनाथस्तवन २ अप सुधानन्दसूरि १६०५६ (३) जीराउलापार्श्वनाथस्तवन
३ लावण्यसमय ३१०५ जीराउलापार्श्वनाथस्तवन
सर्वोपद्रवशान्तिगर्भित ३ अप सुधानन्दसूरि