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पूर
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लगे। बुद्ध को जव इस बात की खबर लगी, तब उन्होंने कहा : "भिक्षुओ, मेरे शरीर के लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं नहीं चाहता कि मेरे शिष्य डरकर मेरे शरीर की रक्षा करें। इसलिए पहरा न देकर सव' अपने-अपने काम में लगें।" २१. हाथीपर विजय
कुछ दिनों के बाद बुद्ध अच्छे हो गए। लेकिन देवदत्त ने धुनः एक हाथी के नीचे दबाने का विचार किया । वुद्ध एक गली में भिक्षा लेने को निकले कि सामने से देवदत्त ने राजा का एक मत्त हाथी उन पर छोड़ दिया । लोग इधर-उधर भागने लगे। जिसे जो जगह दीखी वह वहीं चढ़ गया। बुद्ध को भी ऊपर चढ़ जाने के लिए कुछ भिक्षुओं ने आवाज दी। लेकिन बुद्ध तो दृढ़ता से जैसे चलते थे वैसे ही चलते रहे। अपनी संपूर्ण प्रेमवृत्तिका एकीकरण कर उन्होंने सारी करुणा अपनी आँखों मे से हाथी पर बरसाई। हाथी अपनी सूड नीचे कर एक पालतू कुत्ते की तरह बुद्ध के आगे खड़ा रह गया। बुद्ध ने उसपर हाथ फेरकर प्यार जतलाया। हाथी गरीब धन वापस गजशाला में अपने स्थानपर जाकर खड़ा हो गया।
दण्डेनेके दमयन्ति अंकुसेहि कसाहि च । अदण्डेन असत्थेन नागो दनो महेसिना ।।
-पशुओं को कोई दण्ड से, अंकुश अथवा लगाम से वश में रखते हैं, लेकिन महर्पि ने बिना दण्ड और शस्त्र ही हाथी को रोक
दिया।