________________
ma
५. मोक्षको जिज्ञासा :
जिनके पास घर, गाड़ी, घोडे, पशु, धन, स्त्री, पुत्र, दास-दासी भादि हो, वे इस संसार में सुखी माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य का सुख इन वस्तुओं के आधार पर है, लेकिन सिद्धार्थ विचार करने लगा : ___ " मैं स्वयं जरा-धर्मी, व्याधि-धी, मृत्यु-धर्मी, शोक-धर्मी होते हुए जरा, व्याधि, मृत्यु और शोकसे संबंध रखनेवाली वस्तुओं को अपने मुखका भाधार मान बैठा हूं। यह ठीक नहीं 1 "जो स्वयं दाख-रहित नहीं, उससे दूसरोंको सुख कैसे मिल सकेगा। इसलिए जिसमें जरा, व्याधि, मृत्यु या शोक न हो, ऐसी वस्तु की खोज करना उनित है। और उमीका आश्रय लेना चाहिए।
६. वैराग्यकी वृत्ति:
इस विचारमें पड़नेवाले को संसार के सुखोंमें क्या रस रहेगा। जो सुख नाशवान् है, जिनका भोग एक क्षण बाद ही फेवल भूतकालकी स्मृति रूप हो रहता है, जो बुढापा रोग और मृत्युको निकट से निकट खींच लाते हैं, जिनका वियोग शोक उत्पन्न करता है, ऐम मुख और भोगसे सिद्धार्थ का मन उदास होगया । किसीक घरमें कोई प्रिय व्यक्ति दीपावली के दिन ही मरनेकी स्थितिम पड़ा हो उगे उस दिन क्या पक्वान्न प्रिय लगेंगे ? क्या उसकी इच्छा रातको दीपवालीकी रोशनी देखने जाने की होगी। इसी तरह सिद्धार्थको देहके जरा, व्याधि और मृत्युसे होनेवाले आवश्यक रूपातरको क्षण-क्षणमें देखकर, मुखोपभोगसे ग्लानि होगई । वह जहां-तहां इन वस्तुओंको नजदीक आती हुई देखने लगा और अपने आस-इष्टों, दास-दासियों आदिको इस सुखके ही पीछे पड़े देख उसका हृदय करुगासे भरने लगा। लोग ऐसे जड़ कैसे बन गये ? विचार को नहीं करते ? ऐसे तुच्छ सुखके लिए आतुर कैसे होते हैं । आदि विचार उसे