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महावीर का जीवन धर्म १३७ वे इच्छा न करें, उसमें से वे आगे बढ़ना चाहें तो यह देखकर प्रसन्न हों।
१९. बच्चों के विवाह की आपपर कोई जिम्मेवारी नहीं है। लेकिन यदि आप उन्हे ज्या तो वहको लड़की के समान मानने
और बच्चों का सुखी संसार देख प्रसन्न होनेका फर्ज अवश्य है। २०. सब के हित में ही आपका हित है।
आपको जरूरी दिखाई दे तो आप अपने गांव या देश को छोड़कर चले जाइये लेकिन आप ऐसा कोई काम नहीं कर सकते जिससे अपके गाँव या देश का अहित हो, फिर आपको भले अपने जान-माल की जोखम उठाना पड़े। यदि आपके ग्राम में पानी का दुख हो और आपके कुएँ में बहुत पानी हो तो वह कुआँ गाँवको ही सौंप देना चाहिए। यदि विदेशी कपड़े के व्यापार से आपको बहुत लाभ होता हो लेकिन उससे आपके देशको नुकसान पहुँचता हो तो आपको वह व्यापार बद कर देना चाहिए । यदि आपकी शालाएँ स्वतंत्र रखने मे ही देशका हित हो तो चाहे जितना नुकसान उठाकर भी आपको ऐसा ही करना चाहिए । ग्राममें या देश में रहकर उसके प्रति कर्तव्यसे विमुख रहनेपर आप परमार्थ साधने की विलकुल भाशा न रखें। जिसे आप परमार्थ की सिद्धि मानेंगे यह परमार्थ नही, सिर्फ कल्पना होगी।
२१. प्रेम-रहित साधना व्यर्थ है :
वैराग्य और प्रेम ये दो विरोधी वृत्तियाँ हैं, ऐसा खयाल यदि आपका हो तो वह बिलकुल मिथ्या है, यह मैं आपको निश्चयपूर्वक