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अहिंसा के नये पहाडे
११५ लीको में चलकर हम अहिंसा धर्म का विचार और आचार करते आये हैं उन लीकों से निकल कर स्वतंत्र दृष्टि से विचार और उसके अनुरूप आचार की खोज करने की जरूरत है।
५. हिंसा-अहिंसा की जाँच : - इस जमाने में हिमा-अहिंसा के प्रश्न की जाँच विशेष कर मनुष्यो के परस्पर-व्यवहार के क्षेत्र में करना जरूरी है। मनुष्यों का परस्पर-व्यवहार हिंसात्मक, असत्यपूर्ण और अशुद्ध रहे और केवल गुगे प्राणियों के प्रति व्यवहार तक ही हम अपनी अहिंसा सीमित रखें, तो उसमे तारतम्य मग का दोष होता है । गांधीजी ने आज जिस अहिंसा की साधना का आरम्भ किया है, उसका क्षेत्र मनुष्यो का परस्पर-व्यवहार है।
६. अस्वस्थ मनुष्य-समाज:
सारी दुनिया का मनुष्य-समाज अस्वस्थ (वेचैन ) हो रहा है। अिस अस्वस्थता का कारण प्रकृति का कोणी महान् कोप नही है। शेर या सिंह आदि जंगली जानवरो का उपद्रव एकाएक बढ़ गया हो, ऐसी भी कोई बात नहीं है। वरन् मनुष्यमनुष्य के परस्पर-व्यवहार के कारण ही आज यह परेशानी है। मनुष्य ही मनुष्य को मारता है, यंत्रणाएँ देता है और अनेक प्रकार
से पीड़ा देता है, और इसलिए आज साग मनुष्य-समाज बड़े ₹ भारी संकट में आ गया है।