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अहिंसा के नये पहाड़े
१. अहिंसा के ट्रस्टी:
दुनिया के महान् धाँमें से जैनोंने अपने पापको महिंद्या के खास संरक्पक (इस्टी) माना है। अहिंसा के कुछ संगोंकाखासकर खान-पान के क्षेत्र में उन्होंने पड़े जतन से पोषण किया है और अपनी वृचियों को इतना कोमल बना लिया है कि वे किसी जीव के रक्तपात की कल्पना भी नहीं सह सकते। सैकड़ों या के संस्कारो के कारण अहिंसा के लिए उनके दिछमें उत्कट आदए है
और अव उन्हें दलीलें देकर यह समझाने की जरूरत नहीं रही है कि अहिंसा ही परम धर्म है।
२. विपरीत धारणा:
दुनिया में, और हिन्दुओं में भी, ऐसी कई जातियाँ है जो कहती हैं कि "अहिंसा हमारे समझ में नहीं आती, पर मनुष्यस्वभाव के विरुद्ध है, वह आत्मघातक सिद्धान्त है। वह शादीरिक दुर्बलता और मानसिक कायरता को बढ़ानेवाली है, असका अतिरेक हो गया है," इत्यादि इत्यादि।
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