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समालोचना
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से प्रेरणा पाकर कई आर्य-पुरुष जन्म-मरण के फेरे से छूटने के, मोक्ष प्राप्त करने के विविध प्रयत्न करते हैं । जैसे घने वैसे कर्म की चाबी को खत्म करने का ये प्रयत्न करते हैं। आर्यों में से कई एक मुमुक्षु-गण पुनर्जन्म-वाद से उत्तेजित हो मोक्ष की खोज में लगे हैं। ऐसी खोज में जिन्हें .जिस-जिस मार्ग से शाति मिली-जन्म-मरण का भय दूर हुआ, उन्होने उस-उस मार्ग का प्रचार किया। इन मार्गों की खोज से अनेक प्रकार के दर्शन-शास्त्र पैदा हुए। महावीर अिसी प्रकार की प्रकृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। २. दुःख ले मुक्तिः
बुद्ध की प्रकृति इससे भिन्न है। जन्म से पहले की और मृत्यु के बाद की स्थिति की चिंता करने की जिन्हें उत्सुकता नहीं है। यदि जन्म दुःख रूप हो तो भी जिस जन्म के दुःख तो सहन कर लिए गए। पुनर्जन्म होगा तो इस जन्म के सुकृत और दुष्कृत के अनुसार आवेगा इसलिए यही जन्म भावी जन्म का कहिए या मोक्ष का कहिए, सबका आधार है। इस जन्म को सुधारने पर भावी जन्मो की चिंता करने की कोई जरूरत नही। क्योकि इस जन्म को सुधारनेवाले का दूसरा जन्म यदि इससे चुरा भावे तब तो यही कहना होगा कि सत्कर्म का फल दुःख है। यह माना नहीं जा सकता। अतः इस जीवन के पाँच दुःख ही अनिवार्य रूप से
शेष रहते हैं : ज़रा, व्याधि, मृत्यु, इष्ट-वियोग और अनिष्ट-संयोग । __इसके अतिरिक्त तृष्णा के कारण भी सुख-दुःख भोगने में आते हैं।
यदि खोज करने जैसा कुछ हो तो इन दुःखो से छूटने का मार्ग हो