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सर्वदर्शन संग्रह में लिखा गया है क आस्रव तथा संवर के मोक्षोपयोगी तत्वों का प्रतिपादन ही जैन दर्शन का प्रधान विषय है।'
आश्रवोभवर्हतुः स्यात संवरो मोक्षकारणम् । इतीयमार्हती दृष्टिरन्यदस्याः प्रपंचनम् ।। ३. बौद्ध दर्शन
__ अवैदिक दर्शनों में अन्तिम बौद्ध दर्शन है। बौद्धमत के प्रवर्तक गौतमबुद्ध थे। इस धर्म के उदय होने में सहायक उस समय संभवतः भारत की परिस्थितियां थी। दास प्रथा का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया था। समाज में पुरोहित वर्ग का बौद्धिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में प्रभुत्व बढ़ रहा था। बौद्ध धर्म का दृष्टिकोण पुरोहित विरोधी था। और यह दर्शन कर्मकाण्ड का विरोध करता था। ब्राह्मण धर्म का हरास बौद्ध धर्म के उदय से शुरू हो गया था।
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध का जन्म ईसा की छठी शताब्दी ईसा पूर्व हुआ था इनका जन्म आज के नेपाल की सीमा पर स्थित लुम्बिनी वन में ईसा पूर्व ५६७ में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे, उनकी माँ का नाम रानी महामाया था। राजकुमार सिद्धार्थ का मन राजमहल के वैभव और विलास में नहीं लगता था कारण कि उनका हृदय अपने चारों ओर व्याप्त पीड़ा और दुःख के दृश्यों से द्रवित रहता था। २६ वर्ष की आयु में उन्होंने अपने एक वर्ष के पुत्र, पत्नी यशोधरा तथा राजप्रासाद के सुख-भोग को त्याग दिया। इसे 'महाभिनिष्क्रमण' कहते हैं। ३५ वर्ष की अवस्था में गया के समीप बोधिवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या करते हुये 'बुद्धत्व' को प्राप्त किये। यहां से मृगदाव (सारनाथ) जाकर पाँच भिक्षुओं को उपदेश दिया जिसे 'धर्मचक्र प्रवर्तन की संज्ञा दी जाती है। और यहीं से बौद्ध धर्म का आरंभ हुआ। भगवान बुद्ध धर्म की शिक्षा जनसाधारण की भाषा 'मागधी' में देते रहे। अन्त में मल्लगणराज्य की राजधानी कुशीनगर (कसया, जिला देवरिया उ० प्र०) में ८० वर्ष की अवस्था में
'सर्वदर्शन संग्रह - पृष्ट १४३-३०, प्रो० उमाशंकर 'ऋषि चौखमा विद्याभवन वारणसी।
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