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जानकारी देते है।- 'सर्व खलु इदं ब्रह्म' 'अहं ब्रह्मास्मि', 'तत्त्वमसि , 'श्वेतकेतो' आदि महावाक्यों से सभी जीवो में समानता प्रर्दशित की गयी है। आधुनिक युग में भी अद्वैत वेदान्त का महत्व अधिक है ।
अनुसंधान करते समय अनुसन्धात्री की मौलिक प्रवृत्ति का प्राधान्य रहे, ऐसा ध्यान दिया गया है। विषय-वस्तु की विलक्षणता तथा विशदता की दृष्टि से . 'ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य' का अपना विशिष्ट महत्व है। उनकी इसी विशेषता के कारण संस्कृत दशर्न-वर्ग की छात्रा के रूप में संस्कृत-विभाग इलाहावाद विश्वविद्यालय, परास्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने पर मेरे मन में शाङकर दर्शन से सम्बद्ध शोध कार्य सम्पन करने की प्रबल इच्छा समुदभूत हुई, और संस्कृत विभाग के तदानीन्तन अध्यक्ष प्रो० हरिशंकर त्रिपाठी (भूतपूर्व विभागाध्यक्ष) की महती अनुकम्पा से मुझे 'ब्रह्मसूत्र में उद्धृत आचार्यों के मन्तव्यों का सालाचनात्मक अध्ययन' बिषय पर शोध करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। शोध बिषय को दृष्टि में रखकर प्रबन्ध-शोध ग्रन्थ का संक्षिप्तीकरण सरल कार्य नहीं था तथा साथ ही उचित भी नहीं था। अतएव मैने 'ब्रहमसूत्र शाङ्करभाष्य' को आधार मानकर पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती आचार्यों का विवेचन कर रहा हूँ। इस प्रसंग में मै सुधी परीक्षकों से क्षमा-प्रार्थी हूँ।
अनुसंधान क्षेत्र में जिन गुरुजनों ने अपना योगदान दिया उनके प्रति आभार प्रकट करना मैं अपना परम कतर्व्य समझती हूँ। शोध कार्य में प्रवृत्त होने पर मैं अपनी श्रद्धया पूजनीया निर्देशिका डा० रंजना (वरिष्ठ रीडर संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्व विद्यालय इलाहबाद) के प्रति श्रद्धावनत् हूँ, जिनसे मुझे पग-पग पर निर्देशन, अपेक्षित सहायता एवं प्रेरणा मिली। इसके अतिरिक्त विभाग के सभी गुरुजनों से प्राप्त उत्साहवर्धन एवं आशीष हेतु कृतज्ञ हूँ। इस लोक में मातृऋण एवं