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________________ उसमें भी एक बड़ा आर्कषण यह है कि वह इसी जीवन में प्राप्त हो सकती है। संसार मे ऐसा कोई दर्शन नहीं है। जो इस बात में इसके समतुल्य हो, इससे आगे बढ़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है | पुनश्च, परमसत् को जीव आत्मा बताकर इस दर्शन ने हमारे समक्ष उसका सबसे प्रबल प्रमाण प्रस्तुत किया है। दर्शन की अन्य पद्धतियों में परमसत् केवल एक मानसिक रचना या कल्पना है। इसलिये वह सदा अप्रमाणित समस्या ही बना रहता है इसके विपरीत इस दर्शन का परम सत हमारे अवयवहित अनुभव का विषय होने के कारण नितान्त असंदिग्ध है। इसमे संदेह नहीं कि इसकी अनुभूति धूमिल और आंशिक रूप से ही प्राप्त हैं। किन्तु उसका अस्तित्त्व हमसे कभी ओझल नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति उसके स्पष्ट साक्षात्कार के लिये उचित प्रयत्न करे तो उसे अपने ही आत्मा में उसकी अनुभूति प्राप्त हो सकती है। आचार्य शङकर का मत है कि शास्त्रों के अध्ययन से जो ज्ञान प्राप्त होता है अथवा बौद्धिक चिन्तन से जिस निर्णय पर पहुँचते हैं उसकी पुष्टि हम अपरोक्षानुभूति से ही कर सकते हैं। आचार्य शङ्कर का दर्शन समन्वयकारी और उदार है। यह केवल जाग्रत अवस्था के अनुभवो का ही अध्ययन नहीं करता है। बल्कि स्वप्न और सुषुप्ति के साथ ऋषियों-मुनियों की रहस्यानुभूतियों का भी अवलोकन करता है। और उनके ज्ञान का उपयोग करता है। इन्द्रिय प्रत्यक्ष विचार शब्द प्रमाण और प्रातिभ ज्ञान का अपने-अपने क्षेत्र में उचित महत्व स्वीकार किया गया है। आचार्य शङ्कर के दर्शन की सर्वप्रमुख विशेषता है जिसके कारण अन्य दर्शनो के बीच इसका सर्वोच्च स्थान है। और अनेक आक्षेपों के बावजूद यह अडिग बना रहा। कारण यह है कि इसका आधार दृढ़ और निर्दोष ज्ञान मीमांसा पर टिका है इस मीमांसा का मूल तथ्य यह है कि आत्मा चेतन स्वरूप है। कोई किसी भी प्रकार के 364
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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