SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकता है। इस प्रकार प्रतिबिम्बवादियों का कहना है कि अवच्छेदवाद में जिस प्रकार अवच्छेद के गमना-गमन की आपत्ति होती है प्रतिबिम्बवाद में ऐसा संभव नहीं होता है। प्रतिबिम्बवाद में बिम्ब एक है इसलिये भिन्न-भिन्न अन्तःकरण रूप दर्पणों मे एक ही बिम्बभूत चैतन्य के नाना प्रतिबिम्ब बन सकते है, और नाना प्रतिबिम्ब एक बिम्ब से अभिन्न है। अतः वे प्रतिबिम्ब अन्तःकरण भेद से नाना प्रतीत होने पर भी वस्तुतः एक ही है। प्रकाशात्मायति के अनुसार ईश्वर बिम्ब स्थानीय है और जीव उसका प्रतिबिम्ब है। अविद्या में चैतन्य का आभस ही जीव है। उनके अनुसार जीवेश्वर भेद साधक उपाधि अज्ञान हे। अज्ञान नाश होने पर ही जीव ब्रह्म स्वरूप हो जाता है। ब्रह्म के प्रतिबिम्ब ग्रहण करने में अविद्या ही समर्थ है। ईश्वर बिम्ब है तथा जीव उसका प्रतिबिम्ब है। अविद्या में प्रतिबिम्ब अपने ही रूप-जीवों को देखकर सृष्टिलीला स्वतंत्रतापूर्वक करता है। विवरणानुसारी आचार्य बिम्ब को प्रतिबिम्ब से भिन्न मानने पर यह तर्क देते है कि 'अहं ब्रह्मास्मि' एवं “तत्वमसि" आदि वेदान्त वाक्यों में प्रतिपादित जीव-ब्रह्मैक्य की सिद्धि कैसे होगी? इन तर्कवाक्यों में जीव और ब्रह्म को अभिन्न ही कहा गया है इस प्रकार जीव ब्रह्म होने के कारण नित्य शुद्ध-स्वरूप है। ऐसे में, यदि जीव को बिम्ब से भिन्न प्रतिबिम्ब मानकर मिथ्या कह देने पर श्रुतिवाक्यों की असंगति होगी। इसलिये प्रतिबिम्ब को बिम्बाभिन्न मानना चाहिए तथा उसे सत्य मानना चाहिए। आचार्यों ने बडी सूक्ष्म दृष्टि से इन तीनों वादों की समीक्षा की है। अवच्छेदवाद की समीक्षा में उनका मानना है कि यथा अन्तःकरणावच्छिन्न चैतन्य जीव है उसी प्रकार घटाावच्छिन्न चैतन्य को जीव क्यों नही मानते? क्योंकि जैसे आकाश घटावच्छिन्न होकर घटाकाश हो सकता है तो घटावच्छिन्न चैतन्य को जीव क्यों नहीं कहा जाता है? इसके उत्तर में यह कहा जाता है कि अन्तकरणः के स्वच्छ होने से हान स 356
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy