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________________ मुख्य सिद्वान्तों का तुलनात्मक अध्ययन शङ्कराचार्य द्वारा प्रतिपादित मुख्य सिद्धान्त अद्वैत वेदान्त है अर्थात् अद्वैत से तात्पर्य है जिसमें किसी प्रकार का द्वैत न हो। आचार्य शङ्कर का पूरा दर्शन संक्षिप्त रूप से इस श्लोक से स्पष्ट हो जाता है श्लोकार्द्धन प्रवक्ष्यामि युदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः । ब्रह्मसत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नाऽपरः।।' अर्थात् शङ्कर ने कहा ब्रह्म ही एकमात्र सत् है जगत् मिथ्या है जीव और ब्रह्म भिन्न नहीं, एक ही है। 'नेह नानास्ति किञ्चन जगत' अर्थात इस प्रकार नानाविध जगत की व्यवहारिक सत्ता है यह परमार्थिक दृष्टि से असत है। परमार्थिक दृष्टि से एकमात्र ब्रह्म ही परम् सत् है और कुछ नहीं। इस अद्वैतवाद के मुख्य प्रतिपाद्य विषय को शङ्कराचार्योत्तर अद्वैत वेदान्त के आचार्यों ने भी अपने-अपने दृष्टिकोण से स्वीकार किया और इसका विश्लेषण कर इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाया। शङ्कराचार्य के चार शिष्य थे। सुरेश्वराचार्य पद्मपाद, हस्तामलक, त्रोटक। इसमें से सुरेश्वराचार्य और पद्मपाद विशेष रूप से प्रसिद्ध है। आचार्य शंकर द्वारा प्रतिपादित अद्वैत के विकास में उनके शिष्यों-प्रशिष्यों में सुरेश्वराचार्य, पद्मपाद प्रकाशात्मायति, सर्वज्ञात्ममुनि, और वाचस्पति मिश्र का महत्वपूर्ण योगदान है। इन आचार्यो का आविर्भाव ८वीं ६वीं ई० में हुआ था जिसके कारण आठवीं नवीं शती का काल यदि अद्वैतवेदान्त का स्वर्ण काल कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी। इन दार्शनिकों ने शाङ्कर भाष्य में प्रतिपादित अध्यास, मिथ्यात्व, अविद्या का भावरूपत्व, ' इस श्लोक की दूसरी पंक्ति ब्रह्मज्ञानावली माला के श्लोक २० की प्रथम पंक्ति है। 335
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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