________________
कैसे स्वीकार किया जाय? इसके उत्तर में मधुसूदन सरस्वती कहते है कि अविद्या के
कारण एक ब्रह्म ही जीवरूप को प्राप्त करता है उस जीव की ही प्रत्येक शरीर में 'अहं बुद्धि होती है इस प्रकार जीव अनन्त न होकर एक ही है।
___भेद-अभेद के विषय में जो विवाद है उसकी अभिव्यक्ति भेदवादी नव्यनैयायिक शङ्कर मिश्र के ग्रन्थ भेदरत्न प्रकाश में और अभेदवादी मधुसूदन सरस्वती के ग्रन्थ अद्वैतरत्नरक्षण में विशेष रूप से हुई है। शङ्कर मिश्र ने भेदसिद्धि इसलिये की है कि अद्वैत वेदान्ती भेद खण्डन न कर सकें
भेदरत्न परित्राणे तार्किका एव यामिकाः ।
अतो वेदान्तिनः स्तेनान्निरस्यत्येष शंङ्करः।। इसका प्रत्युत्तर मधुसूदन सरस्वती ने 'अद्वैत रत्नरक्षण' में इस प्रकार व्यक्त किये है
'अद्वैतरत्न रक्षायां तत्त्विकां एव यामिकाः।
अतो न्यायविदः स्तेनान्निरस्यामः स्वयुक्तिभिः ।। भेद के चार प्रभेद का खण्डन मधुसूदन सरस्वती के पूर्व श्री हर्ष ने 'खण्डन खण्ड खाद्य' नामक अपने ग्रन्थ में किया है
एकं ब्रह्मास्त्रमादाय नान्यं गणयतः क्वचित्। .
आस्ते न धीरवीरस्य भंगः संगरकेलिषु ।। इस विवाद में खण्डनकार का पक्ष लेते हुये मधुसूदन सरस्वती शङ्कर मिश्र को परामर्श देते है
मोक्षाय स्पृहयालवः श्रुतिगिरां श्रद्धालवोऽथेऽनृजौ वेदान्तार्थ विभावनासु सुतरां व्याजेन निद्रालवः । भेदे खण्डन खण्डितेऽपि शतधा तन्द्रालवस्टार्किकाः कैवल्यात्प्रटलायवः श्रृणुत सदयुक्तिं दयालोर्मया।।
324