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________________ अथवा ग. सत्त्वात्त्यन्ताभाव- विशिष्ट असत्त्वात्यन्ताभाव रूप धर्म का आधार हे? तीनों विकल्प सदोष है। प्रथम पक्ष में सिद्धसाधना, द्वितीय मे विरोध, और तृतीय मे व्याघात है। क्योंकि सत्ववात्यन्ताभाव विशिष्ट असत्त्वात्यन्ताभाव रववचन विरोध है। यहां मधुसूदन सरस्वती ने प्रथम विकल्प को छोड़कर द्वितीय और तृतीय विकल्प को तर्को और युक्तियों से निर्दोष सिद्ध किया है। घ. व्यास तीर्थ ने दूसरा आक्षेप किया कि मिथ्यात्व का लक्षण-त्रैकालिक निषेध प्रतियोगित्व मिथ्यात्व है। प्रकाशात्मा के विवरण में भी यह लक्षण दिया गया है। यहां भी व्यासतीर्थ ने तीन विकल्प उठाये है-(१) त्रैकालिक निषेध यदि तात्विक है तो अद्वैतहनि है (२) त्रैकालिक निषेध प्रतिभासिक मानने पर सिद्धसाधन दोष है (३) त्रैकालिक निषेध को व्यवहारिक मानने पर उसे बाधित मानना पड़ेगा और अर्थान्तर दोष प्रशक्त होगा। इसका उत्तर देते हुए मधुसूदन जी कहते है कि यद्यपि त्रैकालिक निषेध तात्त्विक है फिर भी अद्वैतहानि नही होती है क्योंकि प्रपंञ्च का निषेध तात्विक होने पर भी ब्रह्म रूप ही है, वह ब्रह्म से भिन्न नहीं है। अतः अद्वैत हानि नहीं है। ङ. मिथ्यात्व का तीसरा लक्षण है ज्ञान-निवर्त्यत्व। यह लक्षण भी विवरणकार ने दिया है। व्यासतीर्थ मानते है कि घटादि में यह लक्षण अव्याप्त है क्योंकि यह विनाशशील है तथा दूसरे पक्ष में संस्कारों में अतिव्याप्ति है क्योंकि वे स्मृतिरूप ज्ञान में व्याप्त ज्ञानत्व से निवृत्त होते है। इसके उत्तर में मधुसूदन सरस्वती कहते है कि अधिष्ठान की प्रतीति होना भी ज्ञानकोटि में ही आता है अतएव शुक्ति-रजत आदि में भी भ्रम की निवृत्ति ज्ञान से ही होती है। इस प्रकार प्रपत्र्च से सर्वत्र ज्ञान निवर्त्यत्व सिद्ध है। 322
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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