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कूटस्थ दीप में कूटस्थ चैतन्य को ही साक्षी कहा गया है
अन्तःकरण तवृत्तिसाक्षीत्यादावने कथा।
कूटस्थ एवं सर्वत्र पूर्वाचार्योर्विनिश्चतः ।। निर्गुण उपासना का भी वर्णन ध्यान दीप में किया गया है।' निर्गुण ब्रह्म की उपासना संवादी भ्रम है और सगुण ब्रह्म की उपासना विसंवादी भ्रम है।
वास्तव में पञ्चदशी की भाषा सरल, सुबोध और प्राञ्जल है। यह अद्वैतवेदान्त का प्रवेशद्वार रूपी ग्रन्थ ही नहीं वरन् आप्ततायुक्त ग्रन्थ भी है।
ध्यानदीप-७३)
'आनन्दाभिस्थूलादिभिश्चात्मा च लक्षितः । आनन्दैकरस. सोऽहमस्मीत्येव मुपासते।।
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