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________________ २. इहामुत्रार्थ भोग विराग - साधक को लौकिक पारलौकिक भोगों की कामना का परित्याग करना चाहिए । ३. शमदमादि- साधन-सम्पत- साधक को शम, दम, श्रद्धा, समाधान, उपरति और तितिक्षा इन छः साधनों को अपनाना चाहिए। ४. साधक को मोक्ष प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प होना चाहिए। जो साधक उपर्युक्त चार साधनों से युक्त होता है उसे वेदान्त की शिक्षा लेने के लिये ब्रह्मज्ञान अनुभूति प्राप्त गुरु के चरणों में उपस्थित होना चाहिए। गुरु के साथ साधक को श्रवणमनन-निदिध्यासन प्रणाली का पालन करना चाहिये । गुरु के उपदेशों को सुनना ही 'श्रवण' है, उस पर तार्किक दृष्टि से विचार करना 'मनन' है फिर सत्य पर निरन्तर ध्यान रखना 'निदिध्यासन' है । स्पष्ट है कि शंकराचार्य के ज्ञानमार्ग में तर्क और श्रुतिज्ञान का समन्वय है। तर्क का प्रयोग श्रुत्यर्थ को ग्रहण करने में आवश्यक है। श्रुतिज्ञान तर्क ज्ञान को प्रेरित करता है उसके समक्ष एक आदर्श रखता है। तर्कज्ञान उस आदर्श को प्राप्त करने के लिये अपनी अन्तरंग समीक्षा करता है। वह अपने को जितना युक्ति युक्त और परिपूर्ण बनाता है उतना ही वह ब्रह्मात्मैक्य के अनुभव के सन्निकट पहुंचता है - ‘तर्को वै ऋषिः’अर्थात् तर्क ही आर्षज्ञान का प्राप्तकर्ता है। इस प्रकार शाङ्कर दर्शन पर विचार करने से स्पष्ट होता है कि शाङ्कर दर्शन जीवन दर्शन है। अन्य भारतीय दर्शन सिद्धान्तों की ही भाँति आचार्य शङ्कर के दर्शन में भी न केवल मानव जीवन के सर्वोच्च आदर्श पर ही विचार किया गया बल्कि प्राप्त करने का मार्ग भी बताया गया है और व्यवहारिक जीवन में भी अपनाने पर बल दिया गया है । 275
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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