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________________ हे शाश्वत गुरु! हे जगद्गुरु! श्रुतियों के अर्थ निरूपण में कपिल, कणाद और गौतम ऐसे प्रतिभाशाली ऋषियों ने भी भूलें की, ठीक-ठीक विवेचन में वे भी भ्रमित हो गये। आप शिवरूप में अवतीर्ण हुये हैं आप अज्ञानान्धकार दूर करने के लिये श्रुतियों के अर्थ की वास्तविक व्याख्या की है। अल्पबुद्धि वाले टीकाकारों की टीकाएं विषधर सो के समान है उनके दंशन से श्रुतियां जर्जर हो गयी थी। मैं आज गृहस्थ धर्म को छोड़कर आपका शिष्यत्व स्वीकार करता हूँ। कृपया ब्रह्मतत्व का उपदेश कीजिये। आचार्य शङकर ने प्रसन्न होकर इनके सन्यास का नाम सुरेश्वराचार्य रखा। शंङ्कर और भारती का शास्त्रार्थ शास्त्रार्थ में पति के पराजित हो जाने पर भारती ने आचार्य शङ्कर से कहा हे विद्वान! मेरे पति की पराजय अभी अपूर्ण है क्योंकि शास्त्रों में पत्नी को पति की अर्धांगिनी माना गया है। मैं पूर्ण रूप से मानती हूँ कि आप सर्वज्ञ है। तथापि मेरी इच्छा है कि शास्त्रार्थ करूँ।' शास्त्रार्थ वाली घटना एक तपस्वी के मुख से मैं बचपन में सुन चुकी हूँ जिसने मेरे भूत और भविष्य से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटनाओं का उद्घाटन किया था। जिसमें कहा था कि शङ्कर के साथ तुम्हारे पति (ब्रह्म) मण्डन का शास्त्रार्थ होगा और वे पराजित होगें और गृहस्थ कर्म छोड़कर सन्यास ग्रहण करेंगें। जो अक्षरशः आज सत्य हुई। आचार्य शङ्कर ने कहा- हे अबले! तुम्हारा हृदय मेरे साथ शास्त्रार्थ करने के लिये उत्कंठित हो रहा है, यह जो वचन तुमने कहा वह अनुचित है, क्योंकि यशस्वी पुरुष महिलाजनों के साथ वाद-विवाद नहीं करते। किन्तु वाद में शङ्कर तथा भारती (साक्षात् सरस्वती) से शास्त्रार्थ हुआ और लगभग सत्रह दिन तक चला। सरस्वती ने सोचा कि शङ्कर बचपन में ही सन्यासी हो गये थे अतः कामशास्त्र में इनका ज्ञान नहीं होगा। अतः इसी कामशास्त्र के द्वारा मैं शकर दिग्विजय-:...,५८,५६.६० प्रकाशक- महन्त नरोत्तम गिरि-हरिद्वार 254
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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