________________
३. 'अहं ब्रह्मास्मि' (बृहदा० उप० १।४।१०) यजुर्वेद का यह महावाक्य गुरु उपदेश से
तत् (ब्रह्म) तथा त्वं (जीव) पदों के अर्थ का यथार्थ ज्ञान करने से मैं ही नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सत्य स्वभाव ब्रह्म हूँ यह अखण्डाकार चित्तवृत्ति उत्पन्न होती है यह
अनुभव वाक्य कहलाता है। ४. 'अयमात्माब्रह्म' (मा० उप० २) अथर्ववेद से सम्बद्ध परोक्ष रूप से बतलाये गये ब्रह्म के प्रत्यक्ष रूप से आत्मा होने का निर्देश करता है।
इस प्रकार बुद्धिमान शङ्कर ने सम्प्रदायवेत्ता पराशरपुत्र व्यास के द्वारा कहे गये सूत्र के द्वारा प्रतिपदित ब्रह्म को जानकर दयालु व्यास जी के वेदान्त शास्त्र के गूढ़ अभिप्राय को भी भली-भांति जान लिया। और शङ्कराचार्य गोविन्दपाद के निकट रहकर समस्त शास्त्रों का अध्ययन किये। इस प्रकार गोविन्दभगवत्पाद आचार्य शंकर के पूज्य गुरु थे।
136