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________________ देवता शब्द से ईश्वर का ग्रहण नहीं करना चाहिये। अतः वेदों में एक ही ईश्वर की उपासना का विधान है। उपनिषदों में एकेश्वर का वर्णन वेदों की भांति उपनिषदों में भी ईश्वर के विविध नाम प्राप्त होते हैं। महर्षि दयानन्द ने ईश्वर का मुख्य नाम 'ओउम्' बतलाया है। यह 'ओउम्' नाम उपनिषदों में भी प्राप्त होता है। जो ईश्वर का पर्यायवाची नाम के रूप में है। ईश्वर को ब्रह्म, मायाविन आदि नामों से भी वर्णित किया गया है। उपनिषदों में ईश्वर के जिन विशेष नामों की व्याख्या की गयी है ने सब वेदों के ही अनुसार है। वेदों की ही तरह उपनिषदों में भी कहा गया है कि वह परम ब्रह्म विभिन्न नामों से जाना जाता है। उदाहरणतया- श्वेताश्वेतरोप० में कहा गया है कि उसी को अग्नि, उसी को आदित्य, वायु, चन्द्रमा, आप आदि विभिन्न ये नाम ईश्वर के ही नाम है। 'तदेवाग्निस्तदादित्य(श्वेता० ४/२)। कठोपनिषद् में कहा गया है कि यह 'ओऽम' ही अविनाशी ब्रह्म है और यही सब का आलम्बन है। ‘एतध्येवाक्षरं ब्रह्म एत ध्यमेवाक्षरं परम्।' इस ओंकार का जप करने से ही परमानन्द की प्राप्ति हो जाती है। यह 'ओऽम्' ही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है यह ओउम् त्रिकालातीत है अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्यत् में यह ओङ्कार ही है। 'य आमित्येतदक्षरमिदोसर्व प्रश्नोपनिषद् में ओंकार का वर्णन करते हुये लिखा गया है कि हे सत्काम निश्चित है कि यह ओंकार ही ब्रह्म है इसी को दोनों रूपों में परब्रह्म और अपरब्रह्म भी कहते हैं। 'एत द्वै सत्यकाम परं चापरं च ब्रह्मयदो ओंकार' (प्रश्नोपनिषद्-५/२)। मुण्डकोपनिषद् में यह कहा गया है कि दो सुन्दर परों वाले पक्षी ही प्रकृति रूपी वृक्ष पर विराजमान हैं उसमें से एक फलों का आस्वाद लेता है और दूसरा तटस्थ भाव 150
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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