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________________ वेदों के लिये 'आम्नाय' शब्द भी प्रयुक्त किया गया है। मीमांसा सूत्र में वेद को मंत्रब्राह्मणात्मक माना गया है यही 'आम्नाय का भी स्वरूप है । अतः वेदही आग्नाय है । अमरकोष में कहा गया है कि- "श्रुतिः त्रयीवेद आग्नायस्त्रयी ।" (अ० कोष० १,६,३) वेद को 'त्रयी' शब्द से भी अभिहित किया गया है 'त्रयी' से तात्पर्य विविधरूप हैं, मंत्र के तीन प्रकार है ऋक, साम और यजुष । इसे ही 'त्रिविध संहिता' के नाम से भी जाना जाता है। कहीं वेद के लिये 'छन्द' शब्द का भी प्रयोग किया गया है । 'छन्द' के अनेक अर्थ हैं जिसमें एक 'पूजा' भी है। अर्थात् जिसके द्वारा देवताओं की स्तुति, 'पूजा की जाती है वे छन्द है या वेद हैं । वेद को 'स्वाध्याय' भी कहा गया है क्योंकि तीनों वर्णों के लिये स्वाध्याय का एकमात्र विषय वेद माना गया है। वेद के दो विभाग हैं- मंत्र तथा ब्राह्मण - " मंत्रब्राह्मणात्मको वेदः । " ( आप० परि० ३१) वेद किसी एक ग्रन्थ का नहीं अपितु एक पूरी साहित्य राशि का नाम है जिसके चार भाग हैं- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक उपनिषद । संहिताएं चार हैं- ऋक संहिता, यजुष संहिता, साम संहिता और अथर्व संहिता । इनका संकलन यज्ञानुष्ठान की दृष्टि से किया गया है। यज्ञ यागादि के विधिपूर्वक अनुष्ठान के लिये क्रमशः चार ऋत्विजों की आवश्यकता होती है। होता, जो स्तुति मंत्रों के उच्चारण से देवताओं का आह्वान करता उद्गाता मधुर स्वर से मंत्रगान करता है अध्वर्यु यज्ञ के विविध अंगों का सविधि सम्पादन करता है तथा ब्रह्मा सम्पूर्ण यज्ञानुष्ठान का विधिवत् निरीक्षण करता है 1 परम्परा ऋक् संहिता- ऋक् संहिता १०२८ सूक्तों का संकलन है इसमें सूक्त दस मण्डलों में रखे गये हैं और इसका अन्य विभाजन 'अण्टकों' में भी किया गया है। अनुसार इसके द्वितीय मण्डल से सातवें मण्डल तक के ऋषि ग्रत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वसिष्ठ हैं। ऋग्वेद में उन मंत्रों का संग्रह है जो देवताओं की स्तुति के निमित्त गाये जाते हैं । पतंञ्जलि ने ऋग्वेद की २१ शाखाओं 126
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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