________________
श्रौत दर्शन और गीता
वेद और दर्शन
संस्कृत में वेद शब्द का अर्थ 'ज्ञान' है क्योंकि यह ज्ञानार्थक 'विद्' धातु से निष्पन्न हुआ है। 'विद्' धातु करण अर्थ में 'धञ्' प्रत्यय लगाने पर 'वेद' बनता है।
विद् धातु के चार अर्थ होते हैं- ज्ञान, सत्ता, लाभ, विचारण। अतः जिसके द्वारा सभी मनुष्य समग्र विद्याओं को जानते हैं, प्राप्त करते हैं, विचार करते हैं और विद्वान होते हैं, वह वेद है- 'विद् ज्ञाने सत्तायाम् लाभे विद् विचारणे । एतेभ्यो हलश्च इति सूत्रेण करणाधिकरण कारकयोर्घञ प्रत्यये कृते वेद शब्दः साध्यते।'
ज्ञान किसी भी विषय का हो सकता है सभी भौतिक-आध्यात्मिक विषय ज्ञान के विषय हैं अर्थात् ज्ञेय हैं तथा समस्त ज्ञेय का आधार ही वेद है। इसी कारण प्रायः सभी विषयों का वर्णन वेद में उपलब्ध होता है । वेद शब्द, अलौकिक ज्ञान इष्ट की प्राप्ति तथा अनिष्ट का परिहार है।' इस अलौकिक ज्ञान का एकमात्र साधन वेद ही है । अतः वेद शब्द अलौकिक ज्ञान का वाचक है। कुछ विद्वानों के अनुसार वेद शब्द धर्म का वाचक है, कुछ विद्वानों के अनुसार धर्म का ज्ञान जिससे प्राप्त हो वही वेद है । 'विदन्त्यनेन धर्म वेद:' (अ० कोष टीका १/५/३) ।
वेद विश्व साहित्य की सबसे प्राचीन रचना है यह प्राचीनतम मनुष्य के धार्मिक और दार्शनिक विचारों का मानव भाषा में सर्वप्रथम परिचय प्रस्तुत करता है। डा० राधाकृष्णन ने कहा है कि "वेद मानव मन से प्रादुर्भूत ऐसे नितान्त आदिकालीन प्रामाणिक ग्रन्थ जिन्हें हम अपनी निधि समझते हैं।" आचार्य बलदेव उपाध्याय ने
' अलौकिक पुरुषार्थोपायं वेत्ति अनेन इति वेद शब्द निर्वचनम्
वेदयति सवेदः।। तै० भा० भू० सम्पा० वल्देवउपा० पृ० २ ऋ० भा० भू० सम्पादक- वल्देवप्रसाद, पृ० ४५
2
The vedas are earliest document of the human mind that we possess-indian philosophy vo/i (p-63).
124
इष्टप्राप्त्यनिष्ट परिहारयोर लौकिकमुपायं यो ग्रन्थो