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आत्मा एक ही है जगत् प्रपञ्च माया की केवल प्रतीति मात्र है जीव और जगत दोनों ही मायाकृत है। जिस प्रकार रज्जू में सर्प की प्रतीति भ्रम से होती है और जैसे ही रज्जू का यथार्थ ज्ञान हो जाता है वैसे ही सर्प रूपी मिथ्या ज्ञान का बोध हो जाता है। ___आचार्य शङ्कर के सिद्धान्त में मायावाद का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अनेक नाम हैं- माया सदसनिवर्चनीय है, यह अनादि है, भौतिक एवं जड़ है तथा ज्ञान निरस्या है। माया अध्यास' है। माया का आश्रय और विषय ब्रहम ही है किन्तु माया से ब्रहम सर्वथा सर्वदा अलिप्त है ब्रहम के अद्वैत को कोई नुकसान नहीं पहुचाती है। माया के आश्रित होते ही ब्रहम-ईश्वर के रुप में भासित होता है। ईश्वर की व्यवहारिक सत्ता है। परमार्थिक नहीं। शङ्कर की मायावाद का खण्डन विशिष्टाद्वैतवादी रामानुज ने किया है। ब्रह्म
आचार्य शङ्कर ने अद्वैत वेदान्त में ब्रह्म को ही एक मात्र सत्य माना है ब्रह्म के अतिरिक्त और कुछ भी सत्य नहीं है। ब्रह्म ही परमार्थिक दृष्टि से सत्य है यह निर्गुण है, निराकार है, अनिवर्चनीय है। ब्रह्म व्यक्तित्व रहित है। ब्रह्म अद्वैत मात्र है उसमें किसी प्रकार का द्वैत नहीं है। ब्रह्म सच्चिदानन्द है अर्थात् सत् चित और आनन्द स्वरुप है। ब्रह्म को आनन्द स्वरूप मानने से वह सगुण नहीं बन जाता है। सत् कहने से वह असत् नहीं है। चिद् है अचित् नहीं है। ब्रह्म शून्य नहीं है, निर्गुण है। अपरोक्ष अनुभूति द्वारा ही ब्रह्म की सत्ता जानी जा सकती है।
___ आचार्य शङ्कर ने ब्रहम और ईश्वर में भेद किया है। ब्रह्म के दो रूप माना है सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म। जब मायोपहित शक्ति से युक्त हो जाता है तब ब्रह्म ईश्वर बन जाता है इसकी व्यवहारिक सत्ता है। परमार्थिक नहीं। जब निर्गुण तथा निराकार ब्रह्म को विचार का विषय बनाते हैं तब वह ईश्वर रूप में जाना जाता है।
' आचार्य शंकर ब्रह्मसूत्र ने शाङ्भाष्य में अध्यास का तीन लक्षण दिये हैं- (१) अध्यासोनाम स्मृतिरुपः परत्र पूर्वदृष्टावमासः (२) अन्यस्य अन्यधर्मावभासता (३) अतस्मिन तबुद्धिः।
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