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भिपकर्म-सिद्धि
२. मर्क क्षीर का या पत्ती के रस का नाक में टपकाना या नस्य देना।
सर्पदंशमें-पीपल के टहनी को तोड़े उसे चाकू से कलम जैसे नुकीला करे। फिर कान मे पर्दे तक उसको पहुँचावे । बडे वेग से वह टहनी अंदर की ओर सिंचेगी । मजबूती से पकड कर रखे। सर्पविप में उत्तम कार्य करती है।
निम्नलिखित विषों मे प्रतिविष विविध अम्ल या तेजाच सें--शंख या वराट भस्म-सज्जीखार और साने का सोडा।
कार्बोलिक अम्ल में-चूने का पानी और शर्वत । विविध क्षारों में--तक्र, नीबू का सिरका का घोल ।
फास्फोरस में-१-२ रत्ती की मात्रा मे तुत्थ पानी में घोलकर १५, १५ मिनट पर देता चले वमन होगा विप निकल जावेगा।
संखिया सेवन चौलाई का रस बडी मात्रा, मे पिलावे । कपास के बीज़ को मीगी भी हितकर है।
पारद मे~~-गधक, दूध और जी का सत्तू । जीर्ण विष मे शुद्ध गंधक और, अपामार्ग स्वरस ।
नाग में-अपामार्ग या अश्वत्थ कपाय । ताग में-दूध, जो मण्ड । जीणे विप में-अपामार्गक्षार ।
अहिफैन में हींग का घोल, करेमू का शाक । शुठी और अदरक भी प्रगस्त है ।
धतूरा में-बैगन का स्वरस, नीबू का रस, भुने जीरे का चूर्ण, कमलपत्रचूर्ण और इमली प्रशस्त है।
वत्सनास में-धतूरे के पत्तो का रस, भल्लातक क्षार, घी, ताम्बूल पत्र स्वरस या कपूर का प्रयोग करे ।
करवीर ( कनेर ) में हरीतकी ।
भल्लातक में-तिल, गुड, गरी, विल्वपत्र, कपास के बीज, हरिद्रा, कचूर, इमली । मूली का रस वाद्य एवं साम्यंतर प्रयोग
अके क्षीर में-नीली रस । तम्बाकू में-गुज, गन्ने का रस और थे। स्तुही मे-सुवर्णपुष्यो-मूलत्वक् । मधु-घृत समजनित विकार में जल ।