SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 772
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिपकर्म-सिद्धि... बद्री पटेरी प्रत्येक १-१ तोला ले कूट कर कपड़छान कर जल में पीसकर इनका कफ करें। फिर उस कल्क में गाय का घी १२८ तोला, शतावर का रस २४८ तोला गिलाकर वृतपाक विधि से पकावे। जब घृत तैयार हो जाय तव कपड़े से छानकर काब के बरतन में भरकर रख दे। मात्रा और अतुपान-आधा तोला से १ तोला तक उतना ही मिश्री का चूर्ण मिलाकर दे बोर ऊपर से दूध पिलावे । उपयोग-जिम रत्री को वारम्बार गर्भपात होता हो, मरे हुये या अल्पायु बालक होते हा और एक बालक होकर फिर गर्भ न रहता हो ऐसी स्त्री को इस गृत का मेन कराने से बुद्धिमान और स्वरूपवान् वालक होता है। गर्भशल, गोभ-गर्भिणी को गर्भकाल मे शूल होने पर घिरनी की को मिट्टी को पानी में घोलकर पिलाना चाहिये । गर्भक्षोभ मे रक्तप्रदरोक्त रक्तस्तभक उपचार करे। सूतिका रोग - १ दशमूल क्वाथ-दशमूल का क्वाथ बनाकर उसमें एक तोला घी मिलाकर पिलाना। २. सूतिका दशमूल क्वाथ-शालपणी, पृश्निपर्णी, छोटी कटेरी, वटी पाटेरी, गोखरू, नीलमिण्टीमूल, गन्धप्रसारणी, सोठ, गिलोय और नागरमोथा । वाथ। ३ दशमूलारिष्ट-(वातरोगाधिकार) भोजन करने के बाद २-४ तोला समान जल मिलाकर । दिन में दो बार । बाल रोग १- बालचातुर्भद्रिका-नागरमोथा, पिप्पली, यतीस और काकवासीगी। मम भाग में देकर महीन ननाया चूर्ण। १-४ रत्ती तक की मात्रा मे पानी में घिमकर चटाना, मातृम्तन्य में घोलकर पिलाना अथवा शहद के साथ चटाना। गिगुणों के ज्वर, पाम, मतीसार, श्वास, वमन सभी रोगो में लाभप्रद रहता है। यह एक हटफर मिद्ध योग है। २. लाक्षादि नल ( ज्वराधिकार )-की मालिग भी वालको के पुराने ज्वर मे प्रगरत है। १ पनकृष्णानणारजीचूर्ण क्षोण गंयुतम् । शिगोर्ध्वगतिमारघ्नं कामयागबमोहरम् ।। - -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy