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________________ द्वितीय अध्याय व्यवहार मे निदान शब्द का प्रयोग व्यावि-विनिश्चय ( Diagnosis ) के अर्थ में ही होता है। जैसे यदि कोई प्रश्न करे कि क्या आपके रोग का निदान हो गया तो उसका एक हो अर्थ होता है कि क्या आपके रोग का ठीक-ठीक निर्धारण हो गया । ऐसी दशा मे निदान गब्द से यहाँ पर सम्पूर्ण निदानपचक का ग्रहण हो जाता है जिनके आधार पर रोग का ज्ञान करना सभव रहता है। इस प्रकार निदान शब्द का सामान्यार्थ मे प्रयोग Diagnosis के अर्थ में होता है। विशिष्टार्थ मे निदान शब्द का प्रयोग रोगोत्पादक हेतु या कारण ( Etiology ) के रूप में होता है जैसा कि चरक की उक्ति 'निदान त्वादिकारणम्' से स्पष्ट हो रहा है। ऊपर की दी गई निरुक्तियो पर ध्यान दे तो निदान शब्द उभयार्थ १ व्याधि विनिश्चय तथा २ कारण के रूप में प्रयुक्त मिलता है। दूसरे शब्दो में इस प्रकार कह सकते है कि निदान शब्द उभयार्थी है । इससे व्यक्ति एव जाति दोनो का बोध होता है। व्यक्ति अर्थ मे यह उत्पादक निदान या हेतु का बोधक और जाति के अर्थ मे यह पूरे निदानपचक का बोधक होकर रोग के Diagosis का बोधक होता है, क्योकि निदान-पूर्वरूप-रूप उपशय-सम्प्राप्ति इन पांचो का अतिम उद्देश्य रोग का निदान ही करना है । रोग का निदान कही कारण से, कही पूर्वरूप से, कही रूप से कही उपशय और सम्प्राप्ति से पृथक्-पृथक् , दो, तीन, चार या पाँचो के द्वारा मिलाकर किया जाता है। सूक्ष्म दृष्टि से विचारे तो दोनो अर्थो मे कोई विशेप अन्तर नहीं है और दोनो हेतु के ही प्रतिपादक होते है । हेतु या कारण के दो प्रकार हो सकते है उत्पादक तथा व्यजक। निदानपचक के पॉचो पदार्थो मे से निदान कारण रूप में उत्पादक हेतु का वोधक और शेप चार पूर्वरूप-रूपादि ज्ञापक या व्यजक हेतु का बोध कराते है । इस प्रकार दोनो अर्थ हेतु के ही बोधक होते है । पर्याय-शास्त्र मे निदान शब्द का प्रयोग अधिकतर विशिष्टार्थ मे अर्थात् रोगोत्पादक कारण या हेतु के रूप में ही हुआ है, रोग विनिश्चय के अर्थ मे नही। इसकी पुष्टि करते हुए एकार्थवाची पर्याय शब्दो का व्यवहार शास्त्र मे पाया जाता है जिसके आधार पर निदान को कारण मानना ही न्यायोचित है। यथा-'निमित्तहेत्वायतन प्रत्योत्थान कारण' 'निदातमाहु पर्यायै ।' ये शब्द पृथक्पृथक् निदान के अर्थ मे व्यवहृत होते है । इनसे निदान का विशिष्टार्य मे हेतु या कारण का ही बोध होता है। अग्रेजी मे इसका पर्याय Casuative Factors or Etiology होगा।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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