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चतुर्थं खण्ड : तैतालीसवाँ अध्याय ६८१ एक मे Acute Poisoning और दूसरे मे Slow Poisoning या Chronic Poisoning स्वरूप होता है । दूसरे शब्दो मे इनको सद्योविपाकी तपा कालान्तर विपाकी कहा जाता है।'
रसायन के गुण--ब्राह रसायन को महिमा का उल्लेख करते हुए लिखा है :- यह महपिंगण से सेवित रमायन है। उसके प्रयोग से मनुष्य निरोग, दीर्घ आयु वाला एव बलवान होता है। उसका शरीर कान्तिमान तथा चन्द्र और सूर्य के समान देदीप्यमान हो जाता है । स्मृति-शक्ति इतनो बढ जाती है कि सुनने के साथ ही उमका धारण भी किया जा सकता है। मनुष्य का शरीर ऋपिसत्व हो जाता है। वह पर्वत के समान पृथ्वी का धारण करने वाला, वायु के समान विक्रम वाला हो जाता है । उसके शरीर मे विष का कोई प्रभाव नहीं होता।
च्यवनप्रास रसायन की महिमा बताते हुए कहा गया है कि यह एक परम उत्तम रसायन है । कई रोगो मे इसका उपयोग उत्तम लाभप्रद होता है । जैसेकास-श्वास, क्षत-क्षीण, स्वरक्षय, उरोरोग, हृदय रोग, वात रक्त, तृष्णा, मूत्रदोप, शुक्रदाप आदि। इस रसायन का उपयोग वृद्धो और बालको के अग की वृद्धि करने के लिए करना चाहिए। इसके उपयोग से च्यवन ऋषि अत्यन्त वृद्ध होने पर भी पुन युवावस्था मे आ गये थे। इसके सेवन से मेधा, स्मृति, आयु, अग्नि, इन्द्रियबल, कान्ति, नैरोग्य, स्त्री मे हर्प प्रभृति की वृद्धि होती है। शरीर का वर्ण बढता है । इसका कुटी प्रावेशिक नामक विशेप विधि से सेवन करने पर सम्पूर्ण वृद्धावस्था का स्वरूप परिवर्तित होकर नवीन युवावस्था का स्वरूप मनुष्य का बन जाता है।
आमलक घृत की गुण स्तुति करते हुए भी लिखा है कि इसके सेवन करने से शरीर पर्वत के समान वृहत् और सारयुक्त हो जाता है, इन्द्रियाँ बलवान् एव स्थिर हो जाती ह । स्वरूप सुन्दर हो जाता है, चित्त प्रसन्न रहता है, घोष घने बादल के मानिन्द हो जाता है और वह मनुष्य बहुसख्या मे बली सन्तानो का जन्म देने वाला होता है। इसी प्रकार आमलक्यवलेह प्रभृति अन्यान्य रसायन
१ अभेषजमिति ज्ञेयं विपरीत यदीपधात् ।
तदसेव्य निषेव्य तु प्रवक्ष्यामि यदौषधम् ।।
अभेषज च द्विविध बाधन सानुबाधनम् । च चि १ २ इत्ययं च्यवनप्राश परमुक्तो रसायन ।
कासश्वासहरश्चैव विशेषेणोपदिश्यते ॥ ।