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चतुर्थ खण्ड : बयालीसवाँ अध्याय निर्मली का पल्क डालकर एक रात के लिए ढककर रखे फिर नितरे हुए अरिष्ट को शोशियो मे भर कर डाट लगाकर सुरक्षित रख ले।
मात्रा-२ तोला समान जल के साथ मिलाकर भोजन के उपरान्त ।
गुण-यह योग बहुत प्रकार के रोगो में विशेषत सूतिका रोग मे लाभप्रद है। यह धातु को पुष्ट करता है, बंध्या स्त्री के लिए पुत्रप्रद होता है-पुरुष के लिए दाजीकर भी होता है।
मृतसंजीवनी सुरा-नवीन गुड ४०० तोले, बब्बूल को छाल, बंर की छाल तथा सुपारी प्रत्येक ६४-६४ तोले, पठानी लोध १६ तोले, अदरक ८ नोले । इन सब द्रव्यो से आठ गुणा जल ग्रहण करे। इस जल में प्रथम गुड को घोले पश्चात् उसमे पीसा हुआ अदरक डाले, फिर बवूल की छाल या चूर्ण पश्चात् बेर की छाल या चूर्ण डाले । फिर शेप अन्य द्रव्यो को भी चूणित कर मिलावे। सब को अच्छी तरह से मथकर घृतस्निग्ध एव धूपित नये भाण्ड मे भर कर उसके मुख को यथाविधि बन्द कर वीस दिनो तक पड़ा रहने दे। २१ वे दिन उसको मयूर यन्त्र मे रख कर मन्द मन्द आंच पर गर्म करे। पश्चात सुपारी, एलुवा, देवदारु, लोग, पद्माख, खस, लाल चन्दन, सोया, अजवायन, काली मिर्च, श्वन जीरा, कालाजीरा, कचूर, जटामासी, दालचीनी, छोटो इलायची, जायफल, मोथा, गठिवन, सोठ, सौफ, मेथीवोज, सफेद प्रत्येक २-२ तोला लेकर कपडछान चूण बनाकर उसमे मिलावे । फिर भवके मे चढाकर इनका अर्क खीच ले फिर शोगियो मे भरकर रख ले।
उपयोग-यह सुरा धातुवर्धक, बल्य एव पुष्टिकर होता है । अग्नि को दीप्त करता है। वायु विकारो का शमन करता है। परम उत्साहवर्धक तथा वाजीकर योग है।
नारसिंह चूर्ण ( वातरोग) या अमृत भल्लातक (कुष्ठ रोग)-ये दोनो भिलावे के योग भी अतिवृष्य होते है। ___ आम्रपाक या खण्डाम्रक-वीजू आम के पके हुए फलो का रस १६ सेर, स्वच्छ दानेदार चीनी ४ सेर । गो घृत २ सेर, सोठ का चूर्ण आधा सेर, काली मिर्च का चूर्ण १ पाव, पिप्पली का चूर्ण दो छटाक, पाकार्थ जल ४ सेर । सबको एकत्र कर अग्नि पर चढावे जव गाढा होने लगे तो उसमे तेजपात का चूर्ण १६ तोला तथा पिपरामूल, चित्रकमूल, नागरमोथा, धनिया, श्वेत जीरा, काला जीरा, सोठ, मरिच, छोटी पीपल, जायफल, तालीश पत्र, दाल चीनी, छोटी इलायची और नागकेशर का चूर्ण ४-४ तोले मिलावे । फिर अग्नि से नीचे उतार करके ठडा होने पर उसमे मधु १ पाव मिलाकर रख ले । मात्रा २ तोला
४३ भि) सि०