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भिषकर्म-सिद्धि आज विविध पशुवो के अण्डकोपो के सत्त्वो का (Testicularextract) तथा शुक्र सत्त्व (Male Hormones ) का व्यवहार चिकित्सा मे बहुलता के साथ हो रहा है । विविध प्रकार के भाव से सेवन योग्य तथा सूचीवेध के द्वारा मांस मार्ग से दिये जाने वाले योग बने बनाये वाजार मे विकते है । उपर्युक्त संहितोक्त मूल-द्रव्य यदि सुलभ न हो अथवा इनका सेवन न कराया जा सकता हो तो उसके प्रतिनिधि द्रव्यो के रूप मे प्राप्त होने वाले इन योगो का उपयोग किया जा सकता है।
अपत्यकर स्वरस-केवाछ के बीज, उडद, खजूर, शतावरी, सिघाडा के फल और मुनक्का प्रत्येक दो दो तोला लेकर उसमें दूध १६ तोले और १६ तोले जल लेकर पकावे जब दूध १६ तोले शेष रह जाये तो मसल कर कपडे से छान कर दूध को रख ले । उसमे मिश्री २ तोला, वशलोचन ३ माशे और नवीन घृत २ तोला और मधु १ तोला मिलाकर पीले। इस योग के सेवन काल मे पथ्य में माठी का चावल, उडद की दाल और दूध देना चाहिए। इस योग के उपयोग से दुर्वल एवं वृद्ध व्यक्ति को भी युवक के समान हर्प होता है और विपुल सन्ताने पैदा होती है । यह एक सिद्ध योग है, आचार्य श्री प० सत्यनारायण जी शास्त्री का भी बहुश. अनुभूत है। पुत्रप्रद यह योग है।
कमलाक्षादि चूर्ण-कमलगट्टा ७ तोला, जायफल २ तोला, केशर १ तोला, तेजपात १ तोला, सालमपजा २ तोला, छोटी इलायची के वीज १ तोला मोठ १ तो०, शतावर २ तोला, असगंध २ तोला, वंशलोवन १ तोला, रूमी मम्तगी १ तोला, पोपगमूल १ तोला, कवाव चीनी १ तोला। सबको कपडछान चूर्ण बना शीशी मे भर ले।
मात्रा एव अनुपान-३-६ माशे चूर्ण को १ तोला गाय के घी मे जरा मा भुनकर उसमे आधासेर दूध और यथारुचि मिश्री डालकर ५-७ उफान आनेतक उबाले फिर नीचे उतार कर ठडा कर ले और पी जावे ।
उपयोग-इसके सेवन से शरीर पष्ट होता है, वीर्य बढता है तथा कामोत्तेजना पैदा होती है।
(सि० यो० म०) वानरी गुटिका-केवाछ के वीज १६ तोले लेकर ६४ तोले दूध में दोला यत्र विधि मे तीन घटे तक म्वेदन करे । फिर पोटली से बीज निकाले और उनको टिलके मे रहित करे। फिर उसे मील पर पोसकर छोटे छोटे बडे के सहा ६-६ मागे की वटिकायें बना ले। अब इम बडे को गोघृत मे पकावे । फिर इन द्रव्य मे दुगुनी मात्रा में चीनी लेकर गाडी चामनी अलग से बना ले । इम चागनी