________________
चतुर्थ खण्ड : वयालीसवाँ अध्याय ६६६ १४. कामदीपक चाण्डालिनी योग-श्वेत पुनर्नवा का चूर्ण बनाकर सेमल के कद के स्वरस के साथ सात वार भावित कर सुखाकर चूर्ण बना ले। फिर उसमे उतना ही सेमल का गोद मिला ले। अब चूर्ण के बराबर शुद्ध गंधक चूर्ण पोसकर मिला दे। इस चूर्ण को ४ रत्ती से १ माशा को मात्रा मे मधु के अनुपान से दे। औपधि के खाने के वाद १ पाव गाढा दूध व्यक्ति को पिलावे । यह योग वडा तीव्र उत्तेजक होता है। आमिप प्रयोग
१ वकरे के अण्ड ग्रथियो को प्रथम थोडे पानी मे उबाल ले। फिर बढिया घी मे उसको लाल होने तक भुने फिर उसमे पिप्पली चूर्ण और सेधा नमक मिला कर यथायोग्य मात्रा मे सेवन करने से उत्तम वाजीकरण होता है।
२ बकरे की अण्ड ग्रंथि २ तोले लेकर १६ तोले दूध मे ६४ तोले पानी छोडकर पकावें । जव दूध मात्र शेष रहे तो कालो तिल का चूर्ण २ तोले पीसकर मिलावे और सम्पूर्ण का सेवन करे। यह उत्तम दृष्य योग है ।
३ ताजा मछली या शफरी मछली का मास घृत मे भूनकर सेवन करने से उत्तम वृष्य होता है।
४ कच्छप मास या कच्छप का अण्डा भी घृत में भूनकर सेवन करने से वृष्य होता है।
५ भैसे के मास मे बकरे के अण्ड अथि और उडद को पकाकर नये घृत मे भून ले फिर उसमे ताजे फलो के रस, धनिया, जीरा, सोठ और नमक मिलाकर सेवन करे तो उत्तम वृष्य होता है।
६ गौरेये को तित्तिर के मास रस मे पकावे या तित्तिर मास को मुर्गे के मासरम मे पकावे या मुर्गे के मास को मोर के मासरस मे पकावे या हस के मासरस में 'मोर के मांस को पकावे । नवीन देशी घी मे तलकर फलो के रस और गध द्रव्यो से संयुक्त करके सेवन करने से उत्तम वृष्य होता है ।
७ चटक (गौरेये) का मास पकाकर खाकर ऊपर से दूध उत्तम वाजीकरण होता है।
८ घडियाल के शुक्र मे भुने हुए मुर्गे के मास का सेवन या घडियाल के अण्डो और मुर्गे के मास के साथ पकाकर खाना उत्तम वृष्य योग है।
९ मछली के अण्डो को घी में तलकर सेवन । अथवा हंस-मोर-तित्तिर और मुर्गे के अण्डे का सेवन उत्तम वाजीकरण होता है।
१० भैसा, साढ या बकरे को उत्तेजित करके उसके शुक्र का सेवन भी उत्तम वाजीकरण होता है।