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चतुर्थ खण्ड : पैतीसवॉ अध्याय उपद्रव रूप में हृदय का वसामय अपजनन ( Fatty degenation of the heart )-रोगी का हृदयातिपात होकर अल्प आयु मे मृत्यु भी हो सकती है।
मेदो रोग मे कुछ कुलज प्रवृत्ति भी पाई जाती है, कुछ अशो के लोगो मे स्थूलता प्रायः दिखलाई पड़ती है। पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियो मे यह रोग अधिक मिलता है। यद्यपि यह रोग किसी भी आयु मे पैदा हो सकता है तथापि चालीस वर्ष की आयु के बाद अधिक पाया जाता है। आधुनिक वैज्ञानिको ने स्थौल्य की उत्पत्ति मे उपर्युक्त कारणो (व्यायामाभाव, दिवास्वाप एव अत्यधिक पौष्टिक आहार ) के अतिरिक्त कुछ अन्य कारणो का भी भाग लेने की चर्चा की है । जैसे, अवटुका ( Thyroid ), पीयूष ( Pitutary ) एव अधिवृक्क ( Suprarenal ) नथा वृपण ( Testes ) ग्रथि के अत त्रावो को कमी। इससे मौलिक समवर्त ( Basic Metabolism ) की क्रिया बिगड जाती है, जिससे सेवन किये गये सम्पूर्ण वसा का भंजन नही हो पाता और वह वसा शरीर के विभिन्न धातुवो मे सचित होने लगती है, व्यक्ति मेदस्वी हो जाता है । ___ मेद की अस्वाभाविक वृद्धि के कारण जिस व्यक्ति के नितम्ब, उदर एवं स्तन हिलने लगते हैं तथा जिस के शरीर का विकास एवं उत्साह यथायोग्य नही है उसे यतिस्थूल न्हते है ।' मेदोरोग में क्रिया सूत्र--
निदान-परिवजेन-जिन कारणो से स्थौल्य होता है उन कारणो का परित्याग करना परमावश्यक है। अस्तु, आहार-विहार सम्बन्धी उपचारो पर ही विशेष ध्यान देना चाहिये । स्थौल्य का प्रधान कारण अल्प परिश्रम एव अधिक पौष्टिक भोजन ( Highcaloricdict) होता है । अस्तु, स्थूल व्यक्ति के लिये-परिश्रम का कार्य, शारीरिक व्यायाम ( खेल, कूद, दौड, घोडे की मवारी आदि ), चिन्ता का कार्य, स्त्रीसग, अल्प निद्रा का अभ्यास, अर्थोपार्जन, शास्त्रचिन्तन आदि मानसिक परिश्रम अधिक करने का उपदेश देना चाहिये । सक्षेप मे अधिक सतपंण से यह रोग पैदा होता है । अस्तु रोगी का अपतर्पण करना चाहिये। १ मेदोमासातिवृद्धत्वाचलस्फिगुदरस्तन ।
अयथोपचयोत्माहो नरोऽतिस्थूल उच्यते ॥ (च सू २१) स्थूले स्युर्दुस्तरा रोगा विसर्पा सभगन्दरा । ज्वरातिसारमेहार्श श्लीपदापचिकामला ॥