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द्वितीय अध्याय
रोग का उत्पत्तिक्रम तथा क्रिया- काल
रोग या व्याधि - 'सुखसंज्ञकमारोग्य विकारो दुखमेव च ' 'तदुखसयोगा व्याधय 1 'विविध दुसमादधातीति व्याधयः । किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक सुख या दुख देने वाले हेतु को व्याधि कहते है । इसके पर्याय रूप मे आमय, गद, आतंक, यक्ष्मा, ज्वर, विकार अथवा रोग शब्द का व्यवहार पाया जाता है - जिसकी विस्तृत व्याख्या आगे की जावेगी । सक्षेप मे स्वास्थ्य जीवन को एक अस्त्यात्मक या सत्तात्मकदगा (Positive phase ) है, इसके विपरीत अवस्था या नास्त्यात्मक दशा को ( Negative phase ) विकार या रोग कहते है । स्वास्थ्य की व्याख्या करते हुए प्राचीन शास्त्रकारो ने लिखा है
समदोपः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
( सुश्रुत )
स्वास्थ्य को परिभाषा आधुनिक युग मे विविध प्रकार की पाई जाती है । आयुर्वेद शास्त्र की उपर्युक्त स्वास्थ्य की परिभाषा वडी व्यापक एव उत्तम कोटि की है । इसमे शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक सुख की प्राप्ति कराने वाली अवस्था को सुख माना गया है, केवल नैरुज्य या रोगाभाव को ही स्वास्थ्य नही कहा जा सकता। इसी भाव का द्योतक एक आधुनिकतम व्यापक परिभाषा या लक्षण स्वास्थ्य का पाया जाता है । इस परिभाषा को विश्व स्वास्थ्य सघ (WHO) ने स्वीकार किया है
(Health is state of Complete Physical, mental and Social wellbeing and not merely absence of disease or infirmity)
व्याभ्युत्पत्तिक्रम एव क्रियाकाल - ज्यावि कोई स्थिर दशा नहीं है, बल्कि विकारगत विविध परिवर्तनो की एक शृङ्खला है जो कई अवस्थाओ ( Steps and stages ) से आगत एक परिणाम है । रोग मे उसके विकास की विभिन्न अवस्थाये पाई जाती है । रोग को चिकित्सा मे चिकित्सक का यह कर्त्तव्य होता है कि उसके उत्पत्तिक्रम या विकास की विभिन्न अवस्थाओ का ज्ञान करके उसकी रोकथाम, निरोध, विलम्वन या प्रतिकार का प्रयत्न