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चतुर्थ खण्ड : चौतीसवाँ अध्याय
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मांगी हुई भिक्षा से उदर पालन करते हुए तथा मुनियो की तरह ब्रह्मचर्यादि का पालन करते हुए सौ योजन ( ८०० मील ) या इससे भी अधिक योजनो तक निरन्तर भ्रमण करने से मधुमेह रोग नष्ट होता है । अथवा केवल जगल मे रहकर नीवार और आँवले के फलो मे भोजन-वृत्ति का निर्वाह करते रहने से सर्व प्रकार के प्रमेह नष्ट होते हैं । सक्षेप मे आढ्य - वृत्ति का परित्याग और दरिद्र-वृत्ति का अनुपालन श्रेयस्कर रहता है । "
नवारियो ने गद्देदार और आरामदेह सवारियो के स्थान पर हाथी और घोडे की मवारी मधुमेह मे अच्छी मानी गई है । उपर्युक्त पथ्य सभी प्रकार के प्रमेह रोग में विपत मधुमेह में हितकर होते है। सूर्य प्रकाश या धूप मे भ्रमण करना या काम करना भी उत्तम रहता है ।"
मधुमेह पीडित रोगो को अपने भोजन मे मधुर-अम्ल एवं लवण रस पदार्थो का सेवन अथवा स्निग्ध (घी मलाई - रबडी और खोये का वना पदार्थ या मिष्टान्न ) जो ल्फ एव मेद के वर्धक होते है पूर्णतया छोड देना चाहिए । रूक्ष, कटु, तिक्त एव कपाय रस युक्त पदार्थों का सेवन रखना चाहिये ।
इस प्रकार के पथ्यो मे उत्तम आहार जी को रोटी या दलिया, मूंग की दाल और मट्टे का पर्याप्त सेवन उत्तम रहता है । शाको मे परवल एव करैले का सेवन उत्तम रहता है। गूलर एव केले के शाक का सेवन या अन्य प्रकार के पत्राको का जैसे मूली, चोजई, सोआ एव पालक का उपयोग ठीक रहता है । वदशाको मे आलू, शलजम आदि अनुकूल नही पडते है । फलो का सेवन उत्तम रहता है | दूध एवं फलाहार अनुकूल पडता है ।
औपधि-कपाय-रवरस - करैले के ताजे फल का स्वरस १ तोला प्रातः काल में खाली पेट पर लेना । निम्म्रपत्र- स्वरस ६ माशा मधु के साथ । विल्वपत्र स्वरस व बैल की पत्तो का रस या वेल की छाल का काढा बना कर लेना । विस्वी पचाङ्ग का स्वरस मधु के साथ १ तोला । आमलकी स्वरस | कच्ची हल्दी का स्वरस या अभाव मे हरिद्रा का चूर्ण २ माशा । जामुन का फल, जामुन के मूल की छाल का कपाय या जामुन की गुठली का चूर्ण १-३ माशे मधु के साथ सेवन । विजयसार - इसकी लकडी को ताम्रघट मे रखे जल मे
१ व्यायामजातमखिल भजन्मेहान् व्यपोहति । पादातपच्छन रहितो भिक्षाशी मुनिवद्यत || योजनाना शत गच्छेदधिक वा निरन्तरम् । मेह जेतु वने वापि नोवारामलकाशन ॥
२ हस्त्यश्ववाहनमतिभ्रमण रवित्विट् ॥ ( भै र )