SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५.८ भिपकर्म-सिद्धि और खुरासानी अजवायन की पत्ती या वीज प्रत्येक दो भाग ले । सव को जी जुट करके रख ले। इसमें से एक तोला लेकर १६ गुने जल में खौलाकर ४ तोला शेप रहे तो उतार कर छान कर उसमें ५ से १० रत्ती शुद्ध शिलाजीत, श्वेत पर्पटी १० रत्ती और यवक्षार ५ से १० रत्ती तक मिलाकर दे । इस प्रकार रोगी को दिन में तीन-चार बार पिलावे। इसके साथ हजरत जहद की भस्म देने से विशेष लाभ होता है। अश्मरी या शर्करा तथा उससे होने वाले गुर्दे (वृक्कशूल Renal Colic) में विशेष उपयोगी है । ( सि. यो संग्रह) हजरु जूहद की भस्म-एक लम्ब गोल ऊपर से रेखा वाला पत्थर है । यूनानी दवा वेचने वालो के पास इसी नाम से मिलता है। यूनानी दैद्यक मे यह मत्रल और पथरी को तोडकर निकालने वाला माना गया है। मम्म-निर्माण विधि-पहले पत्थर को जल से धो कर कपड़े से पोछ कर साफ कर ले फिर लोह के इमामदस्ते मे कटकर कपडछन चूर्ण बनावे। फिर पत्यर के खरल में तीन दिनो तक मूली के स्वरस मे मर्दन करके टिकिया बनाकर सुखा ले । पश्चात् मिट्टी के दो कसोरो में टिकियो को रखकर अर्धगजपुट में अग्नि दे। म्वाङ्गशीतल होने पर टिकिया को निकाल कर पीसकर शीशी मे भर ले । ४-८ रत्ती की मात्रा मे दिन मे तीन वार अश्मरीहर कपाय के अनुपान से सेवन के लिए रोगी को दे । यदि अम्मरी छोटो हो तो कुछ दिनो तक इसके सेवन करने से पेशाब के रास्ते निकल जाती है । ( सि यो. सग्रह ) उपसंहार-जैसा कि ऊपर मे वतलाया जा चुका है, उपर्युक्त रोगो मे प्राय. ये रोग गल्यकर्म से साध्य होते हैं-फिर भी कई अवस्थायें है जो औपधसाध्य है। इन अवस्वाओ में इन औपधियो के प्रयोग से उत्तम लाभ होता है । अश्मरी-भेदक मोपधियो का पर्याप्त ज्ञान आधुनिक विज्ञान में नहीं है । अस्तु, इन ओपधियो को शस्त्र कर्म के पूर्व एक बार परीक्षा करके अवश्य देखना चाहिये । वृक्क अथवा मूत्र-वह स्रोत तक अश्मरियो का भेदन हो जाना तो युक्त प्रतीत होता है, 'परन्तु वस्तिगत अश्मरी में औपधियो से लाभ पहुँचना कठिन रहता है । अस्तु, शस्त्र क्रिया की ही शरण लेना उत्तम रहता है। एक और बडी विचित्रता इन योगो की है कि जो अश्मरीभेदक योग हैं वे केवल मत्राश्मरी पर ही सीमित नही है गरीर के अन्य भागो में होने वाली अश्मरियो पर भी उनके भेदन में इनको क्षमता देसी जाती है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy