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भिपकर्म-सिद्धि
स्त्रियों में पाया जाने वाला राज गुल्म अपने विशिष्ट लक्षणो से युक्त मिलते है।' रक्तगुल्म का वर्णन स्त्री रोग विज्ञान मे विस्तार से तथा पक्व गुल्मो का गत्यतन्त्र मे विद्रधि के अधिकार में विस्तार के माथ लिखा गया है। यहीं पर काय-चिकित्मा से सम्बद्ध चतुर्विध (वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक तथा सान्निपातिक ) गुल्मो की चिकित्सा का लिखना अभिलपित है । अस्तु, इन्ही चारो की चिकित्मा का मास्यान नीचे किया जा रहा है। गुल्म रोग से सामान्य क्रियाक्रम-~
हारीत सहिता मे गुल्म-चिकित्मा मे व्यवहृत होने वाले ग्यारह क्रियाक्रमों का उल्लेख किया है । जैसे-स्नेहन, स्वेदन, निरूहण, अनुवासन, विरेचन, वमन, वृहण, शमन, गोणितमोक्षण तथा अग्निकर्म । इस प्रकार इन एकादश प्रकार के क्रियाक्रमो में से दोप, दूष्य तथा रोगी के बलाबल का विचार करते हुए प्रयोग करना चाहिये ।
जैसा कि ऊपर में बतलाया जा चुका है गुल्म रोग मे वायु की ही प्रधानता पाई जाती है। अस्तु, गुल्मरोगियो मे सर्वप्रथम वात शामक ही चिकित्सा करनी चाहिये । क्योकि वायु के स्वभावस्थ हो जाने पर स्वल्प चिकित्सा से भी अन्य उटीर्ण दोपो का स्वयमेव गमन हो जाता है। अस्तु, गुल्म रोग मे स्नेह तथा स्वेदन प्रधान उपक्रमो के रूप मे वरते जाते है। स्नेहन के अनन्तर स्वेदन करने से त्रोतम् मृदु हो जाते है, विवद्ध (रुद्ध) वात का संशमन होता है तथा रूक्षता के कारण आत्र में सचित मल का भेदन होकर गुल्म का विनाश होता है ।
गुल्म को नष्ट करने के लिये रोगी के उदर पर तेल की मालिश करके सेंकना उत्तम रहता है। इसके लिये १. वातहर ओपधियो के क्वाथ के वाष्प से सेंक करना (कुम्भीस्वेद ), २. उड़द कुलथी, जो प्रभृति द्रव्यो के चूर्ण को पानी मे
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१. अरुचि कृच्छ्रविण्मूत्र वातान्त्रप्रतिकूजनम् ।
आनाह चोध्ववातत्व सर्वगुल्मेपु लक्षयेत् ॥ (सु) २ मिद्धमेकादशविध शृणु मे गुल्मभेषजम् । म्नेहनं स्वेदनञ्चैव निरूहमनुवासनम् ।। विरेकवमने चोभे लघनं वृहण तथा । गमनञ्चावसेकञ्च गोणितस्याग्निकर्म च ।। कारयेदिति गुत्माना यथारम्म चिकित्सितम् ।। ( हा ) ३ गुल्मिनामनिलगान्तिरूपाय. सर्वशो . विधिवदाचरितव्या । मारते यवजितेऽन्यमुदीणं दोपमल्पमपि फर्म निहन्यात् ।। ( भै र.)