SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 561
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : उन्तीसवाँ अध्याय ५११ शूल तथा वस्ति की वेदना-बस्ति शूल आदि । परन्तु शूलाधिकार नामक प्राचीनोक्त अध्याय मे केवल उदर तथा वक्ष गुहास्थित अवयवो के विकार से उत्पन्न पीडाओ या शूलो का वर्णन करना अभिलपित रहता है। गुल्म रोग मे जिस प्रकार पांच स्थानो मे होने वाले कष्टो का ही समावेश होता है उसी प्रकार शूल रोग का वर्णन भी दोनो पार्श्व, हृदय, नाभि तथा वस्ति इन पांच स्थानो मे होने वाली तीन पीडाओ तक ही सीमित है-अन्य स्थान पर होने वाली तीन वेदनाओ का उल्लेख यथास्थान प्रसगानुसार अन्य अन्य स्थानो पर पाया जाता है । अस्तु, इस अध्याय मे इन पांच स्थानो मे होने वाली तीन वेदनाओ का उल्लेख किया जावेगा। गुल्म के समान इस अध्याय के अंदर उदर एवं वक्ष मे होने वाली वेदनाओ फा ही वर्णन अपेक्षित है। दोनो पार्श्व, हृदय, नाभि तथा वस्ति ये गल्म के पांच स्थान है। इन्ही स्थानो मे होने वाली सभी पीडाओ का इस अध्याय मे समावेश हो जाता है। दोप भेद से शूल आठ प्रकार के होते है-वातज, पित्तज, श्लेष्मज, वात पित्तज, वात कफज, पित्त कफज, त्रिदोषज तथा आमज । किन्तु इन सभी प्रकार के शूलोमे वायु की प्रधानता रहती है । इनमे वातिकशूल प्राय. हृदय, पार्श्व, पृष्ठ, त्रिक तथा वस्ति प्रदेश मे विशेषतया होता है जैसे, हृच्छूल (Angina. Pectoris) पार्श्व शूल ( Pleurodyna, Inter Costal Neuralgia), त्रिकशूल ( Lumbago), वस्तिशूल ( Renal colicuterine colic etc ), पैत्तिक शूल प्राय पित्ताशय ( Biliarycolic), कुक्षिशूल ( Appendicular ) कुक्षि आदि मे होता है। श्लैष्मिक शूल प्राय आमाशय भाग मे (AcuteGasterstis) विकृति आने से होता है। द्विदोषज एव त्रिदोषज शूल दोषानुबघ के भेद से विविध लक्षणो से युक्त होते है, तथा सर्वत्र हो सकते है । . आमज शूल, कफज शूल के समान लक्षण एव चिह्नो वाला होता है-इसका १ शकुस्फोटनवत् तस्य यस्मात्तीवाश्च वेदना । शूलासक्तस्य लक्ष्यन्ते तस्माच्छूलमिहोच्यते ॥ (सु) दोष पृथक्समस्ताभ्या द्वन्द्व . शूलोऽष्टधा भवेत् । । । सर्वेष्वेतेपु शूलेपु प्रायेण पवन. प्रभु ॥ (मा नि ) २ वायु प्रवृद्धो जनयेद्धि शूल हृत्पार्श्वपृष्ठत्रिकवस्तिदेशे । वातात्मकं वस्तिगत च शूल पित्तात्मक चापि वदन्ति नाभ्याम् ॥ हृत्पार्श्वकुक्षी कफसन्निविष्टे सर्वेषु देशेषु च सन्निपातात् ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy