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________________ चतुर्थ खण्ड : छब्बीसवाँ अध्याय ४६३ रक्त को दुष्टि होने से वातरक्त मे कुष्ठ रोग के लक्षणो की समानता पाई जाती है-जैसे त्वचा की विवर्णता, स्वेदका अधिक होना, चकत्तो ( मण्डलो) को उत्पत्ति, चकत्तो के स्थान पर स्वेदाभाव, चकत्तो मे स्पर्श का ज्ञान न होना (Anaesthesia.) या अति रुक (Hypersthesia), परन्तु वातरक्त रोग की अपनी विशेषता भी पाई जाती है-जैसे पादमूल की संधियो मे शोथ, स्फुरण, शूल आदि । पिडिकोत्पत्ति (तरुणास्थि को वाताश्म Trophi), रोग का बार-बार माक्रमण होना, सधियो मे विकृति का वार-बार होना और ठोक हो जाना । बार-बार आक्रमण होने से सधियो में स्थायी विकार भी पैदा हो जाता है। इस प्रकार रोग का पैरो के मूल से आरंभ होकर अथवा क्वचित् हाथो के मूल से आरंभ होकर चूहे के विष के समान (दूषीविष सहश) धीरे धीरे शरीर के अन्य अगो मे भी पहुचता है । चरक मे उत्तान ( Superficial ) तथा गम्भीर ( Deep) भेद से दो प्रकार वातरक्त के बतलाये गये है। त्वचा और मासगत उत्तान तथा संधि, अस्थि और मज्जाश्रित गभीर होता है।' इस रोग की बहुत कुछ समता आधुनिक युग के गाउट (Gout) रोग से पाई जाती है। द्विदोपज तथा एक साल से अधिक पुराना कृच्छ साध्य हो जाता है, परन्तु त्रिदोपज, उपद्रवयुक्त तथा अगूठे से भारम्भ कर के जानु तक पहुँच गया हो, त्वचा विवर्ण, विदोर्ण और स्रावयुक्त हो रही हो तो असाध्य हो जाता है। क्रियाक्रम-वातरक्त उत्तान तथा गम्भीर भेद से दो प्रकार का होता है। त्वचा एवं मास मे आश्रित हो तो उत्तान और आभ्यंतर अवयवो मे आश्रित हो तो गम्भीर कहलाता है । अधिक पुराना होने पर यह रोग दुर्जय हो जाता है। १. हस्त्यश्वोष्ट्र गच्छतश्चाश्नतश्च विदाह्यन्नं सविदाहोऽशनस्य । कृत्स्नं रक्तं विदहत्याशु तच्च स्रस्तं दुष्टं पादयोश्चीयते तु ॥ तत्सपूक्तं वायुना दूषितेन तत्प्रावल्यादुच्यते वातरक्तम् ॥ प्रायश. सुकुमाराणां मिथ्याहारविहारिणाम् । स्थलाना सुखिना चापि कुप्यते वातशोणितम् ॥ पादयोमूलमास्थाय कदाचिद्धस्तयोरपि आखोविपमिव क्रुद्धं तदेहमुपसर्पति ॥ (सु) उत्तानमथ गम्भोरं द्विविध तत्प्रचक्षते । त्वड मासाश्रयमुत्तानं गम्भीरं त्वन्तराश्रयम् ॥ (च ) २ साध्यं स्यान्निरुपद्रवम् । एकदोपानुगं साध्य नवं याप्यं द्विदोषजम । विदोपजमसाध्यं स्याद्यस्य च स्युरुपद्रवा ॥ आजानु स्फुटितं यच्च प्रभिन्न प्रस. तञ्च यत् । उपद्रवैश्च यज्जुष्ट प्राणमासक्षयादिभिः ॥ (सु.) -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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