________________
चतुर्थ खराड : पचीसवाँ अध्याय
सन्ना तथा ग्रीवा संभ ( Spasm of Sternocleido mastold ) - अभ्यंग, स्वेद, नस्य, पंचमूल अथवा दशमूल का क्वाथै पिलाना पाहिये । वरागंध, गोमूत्र और कढवे तैल का लेप ग्रीवा और मन्या मे करने से लान होता है । नस्य में 'अमोनियम कार्य' का सुंघाना या कट्फल चूर्ण का नस्य देना भी बच्चा लाभ करता है ।
कलाय सज
१
वन तथा पङ्गव ( Paralysis of Spinalorigin ) --इस नवन्या में भी चिकित्सा पक्ष वध के सहश ही करनी पडती है । कलायखंज, वन तथा पशुत्व में समान उपचार की ही व्यवस्था करनी पडती है ? कलाय राज में विशेषत. स्नेहन एवं धातुओ के वर्धन का उपचार करना चाहिये । चाय की दाल खाने का वृत्त, रूक्ष अन्न सेवन का वृत्त, हीन पोषण का वृत्त इन रोगो में प्राय पाया जाता है । एतदर्थ उपचार काल मे सर्वप्रथम इन उत्पादक कारणों का वर्जन करना चाहिये । रोगी के लिये भोजन से अधिकतर उद को दाल का सेवन करने को बतलाना चाहिये । घृत, वसा, मज्जा, तैल, दूध, मानरस, जीवतिक्ति युक्त आहारो की व्यवस्था रोगी के लिये करनी चाहिये ।
M
४८७
नये खज्ञ रोग तथा पङ्गुत्व का उपचार करने से लाभ भी शीघ्रता से होता है । पुराने रोगों में चिकित्सा का प्रभाव कम दिखलाई पडता है । उपचार में विरेचन ( नित्यकोष्ठ शुद्धि ), स्थापन वस्ति, स्निग्ध वस्ति, विविध प्रकार के बृंहण तैलो का विशेष करें माप तेल का अभ्यंग, स्वेद, लहसुन और तेल का उपयोग तथा गुग्गुलु के उपयोग से लाभ होता है । गुग्गुलु के योगो में त्रयोदशाङ्ग गुग्गुलु, रसायन योगराज गुग्गुलु अथवा गुग्गुलु वटी के प्रयोग, एरण्डमूल के कषाय, उष्ण क्षोर या उष्ण जल के साथ उत्तम रहता है ।
इन रोगो ( अँधेराङ्गघात, खञ्ज एवं पंगु ) में शुद्ध कुपीलु का उपयोग उत्तम रहता है । शुद्ध कुपीलु २ रत्ती से ४ रत्ती तक घृत और चीनी के साथ अथवा किसी गुग्गुलु के योग के साथ मिलाकर दिया जा सकता है । निम्नलिखित योग वडा लाभप्रद पाया गया है
खञ्जनकारि रस -- शुद्ध कुचले का कपडछन चूर्ण, मल्ल सिन्दूर, रौप्य
१. अर्दित नावन मूनि तैल तर्पणमेव च । नाडीस्वेदोपनाहाश्चाप्यानूपपिशितैर्हिता ।
स्वेदनं स्नेहसंयुक्तम् ॥
(च.चि. २८ )