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चतुर्थ खण्ड : तेइसवॉ अध्याय
४५१ द्रोण जल मे क्वाथ बनावे, चतुर्पाश शेप रहने पर स्वाथ को छानकर रख ले। फिर एक पलईदार पान में यह पत्राघ, मूच्छित गोघृत एक प्रस्थ तथा कल्याण धृत में कथित तल्क को लाल कर अग्नि पर चढाकर पाक करे । इस प्रकार से सिद्ध घृत का उपयोग उन्माद, अपस्मार तथा विविध पित्तविकारो मे लाभप्रद होता है। मात्रा १ तोला। अनुपान दूध ।
शिवा तेल-मुख, नस और यात्र को अलग करके पुरुप शृगाल (गीदड) का मास १ प्रस्थ, पोटली बांधकर, दशमूल की औपधियाँ आधी तुला और जल 'एक द्रोण लेकर एक बडे भाण्ड मे रख कर अग्नि पर चढावे, जब चतुर्थांश जल गेप रहे तो उतारे । टडा होने पर छानकर पृथक् कर ले । फिर एक बडे पात्र मे यह क्वाथ, मच्छिन तिल तेल १ प्रस्य और निम्नलिखित कल्क द्रव्यो को पीस कर पका कर पाफ करे। कल्क द्रव्य--वृहत् पचमूल, वच, कूट, भूरिछरोला, सफेद अनन्तमूल, फाला अनन्तमूल, धतूर का वीज, वरुण की छाल, बैगन, छोटो कटेरी, वटी कटेरी, चित्रकमूल, पोपरामूल, मुलेठी, मेंधा नमक, खिरेटी, सोया; देवदारु, रास्ना, गजपीपल, नागरमोथा, कचूर, लाख, गधप्रसारणी और रक्त चंदन प्रत्येक एक तोला।
इस तेल की मालिश ( अभ्यग) या पान सभी प्रकार के उन्माद मे लाभ प्रद होता है।
धूम, नस्य, अंजन-इनका उल्लेख भूतजन्य उन्माद मे हो चुका है। उन्ही यागो का यथावश्यक प्रयोग करना चाहिये ।
पथ्य-गेहूँ, चावल, मूग, धारोष्ण गाय का दूध, शतधौत घृत, नवीन तथा पुराना गोघृत, कछुए का माम, पुराना कुष्माण्ड का फल, ब्राह्मी या मण्डूकपर्णी का शाक, बथुवा, चौलाई, मुनक्का, कैथ, कटहल, मड वा (धान्य विशेष) पथ्य होता है।'
अपथ्य-मद्य, विरोधी आहार, अधिक मास-सेवन, भैस का दूध, उष्ण पेय तथा भोजन, निद्रा-क्षुधा तथा तृपा के वेगो का रोकना, अधिक लवण, तीक्ष्ण १ गोधूममुद्गारुणशालयश्च धारोष्णदुग्ध शतधौतसपि. ।
घृतं नवीनञ्च पुरातनञ्च कूर्मामिपं धन्वरसा रसाला ॥ पुराणकुष्माण्डफल पटोल ब्राह्मीदल वास्तुकतण्डुलीयम् । द्राक्षा कपित्य पनस च वैद्यविधेयमुन्मादगदेषु पथ्यम् ।। (यो र) निवृत्तामिपमद्यो यो हिताशी प्रयत शुचि । निजागन्तुभिरुन्मादै सत्त्ववान्न स युज्यते ॥ ( च चि ९ )