________________
विषय-सूची
प्रथम खण्ड : निदानपंचक प्रथम अध्याय
१-१४ निदानपंचक-प्रयोजन, यदृच्छा, नियति, परिणाम, निदान-कथन-प्रयोजन, पूर्वरूपा-भिधान-प्रयोजन, पूर्वरूप ज्ञान का चिकित्सा में प्रयोजन, रूपाभिधान प्रयोजन, साध्यासाध्य विवेक, उपशय कथन का प्रयोजन, सम्प्राप्ति कथन प्रयोजन, अशाश-कल्पना, व्याधि-बल, काल, निदानपचक प्रसंग, निदानपचक में विवेच्य विषय एवं उनका प्रयोजन ।। द्वितीय अध्याय
१५-८१ रोग का उत्पत्तिक्रम तथा क्रिया-काल, संचयावस्था या सचयकाल, प्रकोपावस्था, प्रसरावस्था, स्थानसंश्रयावस्था, व्यक्तावस्था, भेदावस्था, पविध परीक्षा, द्विविध या त्रिविध परीक्षा, अष्टविध परीक्षा, पंचविध परीक्षा, निदान निरुक्ति, निदान का निर्दुष्ट लक्षण, सेतिकर्तव्यताकः, हेतु भेद, विप्रकृष्ट, संचयकाल, व्यभिचारी, प्राधानिक, असात्म्येन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध, परिणाम, दोष हेतु, व्याधि हेतु, पूर्वरूपनिरुक्ति, सामान्य पूर्वरूप, विशिष्ट पूर्वरूप, रूपलक्षण, रूप का निर्दुष्ट लक्षण, लिप्तकुम्भकारन्याय, अनुपशय, सम्प्राप्ति का निर्दुष्ट लक्षण, संख्या-सम्प्राप्ति, विकल्पं सम्प्राप्ति, प्राधान्य, वलसम्प्राप्ति, कालसम्प्राप्ति !
द्वितीय खण्ड : पञ्चकर्म प्रथम अध्याय
८५-१२६ पञ्चकर्म, पञ्चकर्म का निपेध, लिक्विडपैराफीन, वसा, मजा, स्नेह व्यापद, अतियोग, अयोग, सम्यक् योग, प्रतिकार, स्नेह-विभ्रम, अस्नेह्य व्यक्ति, स्वेद. स्वेदन, संकर या पिण्ड स्वेद, नाडी स्वेद, कोष्ठ-स्वेद, उपनाह-स्वेद, प्रस्तर स्वेद, परिपेक-स्वेद, जेन्ताक-स्वेद, अश्मघन स्वेद, कर्पू स्वेद, कुटी-स्वेद, कुम्भी स्वेद, कूप स्वेद, होलाक-स्वेद, अविरेच्य । द्वितीय अध्याय
१२४-१५७ वस्ति तथा वस्ति कर्म, वस्ति, नेत्र (नलिका), छिद्र, कर्णिका, वस्ति के दोष, आस्थापन, सिद्ध वस्ति, अनुवासन, यापना वस्ति, पिच्छा वस्ति, नस्य, शिरोविरेचन, प्रति मर्श, नस्य कर्म के भेद ।
तृतीय खण्ड : चिकित्सा वीज प्रथम अध्याय
१६१-१७५ चिकित्सा, शाब्दिक व्युत्पत्ति, कायचिकित्सा, व्याधि का सामान्य हेतु, छ. उपक्रम, आहार, आचार ।
२ भि०सि० भू०